*राजीव डोगरा 'विमल'
कुछ यूं बदला वक्त की
सब कुछ बदलता चला गया।
जमीं ये आसमां और
आसमा से जमी सब
कुछ यूं ही बदलकर
बिखरता सा गया।
इस बदलते हुए वक़्त में
मैंने सोचा
शायद कोई तो मेरा होगा,
मगर आधुनिकता के नाम पर
मुखौटा पहने हुए लोगों ने
समझा दिया की,
कोई अपना नहीं होता
यहां पर
सिवाय जरूरत के।
*कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
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