Subscribe Us

आधुनिक मुखौटा



*राजीव डोगरा 'विमल'


कुछ यूं बदला वक्त की
सब कुछ बदलता चला गया।
जमीं ये आसमां और
आसमा से जमी सब
कुछ यूं ही बदलकर
बिखरता सा गया।
इस बदलते हुए वक़्त में
मैंने सोचा
शायद कोई तो मेरा होगा,
मगर आधुनिकता के नाम पर
मुखौटा पहने हुए लोगों ने
समझा दिया की,
कोई अपना नहीं होता
यहां पर
सिवाय जरूरत के।


*कांगड़ा हिमाचल प्रदेश 


साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल  शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.comयूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ