*प्रीति शर्मा 'असीम'
जिंदगी की बैसाखियों पर,
चलकर ..............यह आज,
कैसा ..........वैशाख आया।
न आज भांगड़े हैं।
न मेले सजे हैं ।
फसल कटने -काटने का ,
किसे ख्याल आया।।
ज़िंदगी की बैसाखियों पर,
चलकर आज,
कितना मजबूर वैशाख आया।
गेहूँ की फसल का ,
घर के ,
आंगन में आज न ढेर आया ।
वह मेलों की रौनक को ,
आज मैंने घरों में बंद पाया।
दिहाड़ी -दार अपना दर्द ,
ढोल की तान पर ना भूल पाया।
जिंदगी की बैसाखियों पर,
चलकर यह कैसा वैशाख आया।
वह हल्की गर्म हवाओं के साथ,
न तेरी धानी चुनर का,
पैगाम आया ।
यह कैसा ,
उदास,ऊबा हुआ वैशाख आया।
*प्रीति शर्मा असीम
नालागढ़ हिमाचल प्रदेश
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/ रचनाएँ/ समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.com
0 टिप्पणियाँ