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पुस्तकें







    *अशोक 'आनन' 

 

   पुस्तकालयों की अलमारियों में 

   सजी - संवरी 

   बड़े क़रीने से जमी हुईं

   पुस्तकों को देख 

   बच्चों के मन में ख़्याल आता है -

 

   काश ! उन्हें मिली होतीं

   पढ़ने के लिए वे पुस्तकें 

   जिन्हें पढ़कर

   उन्होंने सीखी होतीं

   ज्ञान की कुछ बातें ।

   संवारा होता -

   अपना जीवन ।

   

   पुस्तकें -

   जिन्हें बड़ी मुश्किल से मिलता है

   आज कोई पाठक ।

  

   ऐसे में -

   उन्हें अलमारियों में कैद कर

   बना देना कोई सजावटी वस्तु 

   कहां की बुद्धिमानी है ..... ?

   

   वे भी हमारी तरह 

   खुली हवा में 

   लेना चाहती हैं सांसें 

   बनाकर 

   अपने पाठकों से

   पठनीयता का एक आत्मीय रिश्ता ।

  

   पुस्तकें -

   जिनका दम घुटता है 

   बंद अलमारियों में ।

  

*अशोक 'आनन',मक्सी ,जिला - शाजापुर ( म.प्र.)

 



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