*अशोक 'आनन'
पुस्तकालयों की अलमारियों में
सजी - संवरी
बड़े क़रीने से जमी हुईं
पुस्तकों को देख
बच्चों के मन में ख़्याल आता है -
काश ! उन्हें मिली होतीं
पढ़ने के लिए वे पुस्तकें
जिन्हें पढ़कर
उन्होंने सीखी होतीं
ज्ञान की कुछ बातें ।
संवारा होता -
अपना जीवन ।
पुस्तकें -
जिन्हें बड़ी मुश्किल से मिलता है
आज कोई पाठक ।
ऐसे में -
उन्हें अलमारियों में कैद कर
बना देना कोई सजावटी वस्तु
कहां की बुद्धिमानी है ..... ?
वे भी हमारी तरह
खुली हवा में
लेना चाहती हैं सांसें
बनाकर
अपने पाठकों से
पठनीयता का एक आत्मीय रिश्ता ।
पुस्तकें -
जिनका दम घुटता है
बंद अलमारियों में ।
*अशोक 'आनन',मक्सी ,जिला - शाजापुर ( म.प्र.)
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.com
यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ