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मानवता तुम्हे पुकार रही



*शिव कुमार दुबे


पथ पर ठहर जरा

बहुत दौड़ा, बहुत भागा

बड़ी तेजी से उठा,उड़ा

नभ,जल, भूमि, अंतरिक्ष

कुछ भी नही छोड़ा

विजित चिन्ह छोड़ चला

प्रगति की राह चले चला

अब ठहर गया सब

घर मे सिमट गया

अपने बनाये जल में

अब उलझ गया

ठहर जा अब ठहर जा

हर जगह कर मत सौदा

हर तरह भाग दौड़

अंधी दौड़ में बस

अब ठहर जा जहाँ है

वहाँ सबकुछ है, इंसान है

तू बिता समय अब प्रार्थना में

कर दे कुछ दान अब

गरीबो असहायों गरीबो की

कर दे मदद अब उन्हें इंतज़ार तेरा

उन्हें तेरा सहारा उन्हें तेरी जरूरत

कर रहे जो सेवा अस्पतालों में वे

भगवान क्या जरूर वे कर्मयोगी

महान योगी जो उठा रहे बीड़ा

बन मर्मयोगी जो कर सेवा

पीडित मानवता की

वो कर्म योगी ,वो हठयोगी

डटे रहे जो सेवा में

वे ह्रदयस्पर्शी  मर्मस्पर्शी कहाँ है

महापुरुष हमारे दलदल के 

दाल वाले

कहाँ है पंडे और पुजारी

मौलवी और पादरी

दे हमे सहायता अब हमें चाहिये

उठो जागो

मानवता तुम्हे पुकार रही

मानवता तुम्हे निहार रही

मदद करो मदद करो कुछ

तो अनुभूत करो 

 

*शिव कुमार दुबे, इंदौर

 


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