*ज्योति श्रीवास्तव
संकट की इन घडि़यों में
विकट विषम परिस्थितियों में
धैर्य को धारण करना ।
संतोष को अपने में समाहित करना
कुछ भी नहीं है मानव के हाथ में
प्रक्रृति ने यह समझाया
किसी उदास से चेहरे पर,
मुस्कान सजाकर
किसी भटके हुए राही को,
अपनी मंजिल तक पहुंचाकर
किसी व्यथित आत्मा को,
थोडा़ सुख पहुंचाकर
अपने जीवन को सार्थक करना,
मानव हो,
अपनी मानवता का परिचय देना ।
*ज्योति श्रीवास्तव, उज्जैन
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