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लॉक डाउन में बढ़ती घरेलू हिंसा का समाधान



*सुषमा दिक्षित शुक्ला


गरिमामय तरीके से जीने के अधिकार का हनन ही घरेलू हिंसा कहलाता है। वर्तमान समय में कोरोनावायरस के बढ़ते प्रसार ने वैश्विक आबादी को घरों में रहने को मजबूर कर दिया है। लॉक डाउन के तहत घरेलू हिंसा की समस्याओं की दर भी तेजी से बढ़ रही है। घरेलू हिंसा अर्थात कोई भी ऐसा कार्य जो किसी महिला एवं 18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका के स्वास्थ्य ,सुरक्षा , जीवन पर संकट , आर्थिक क्षति और ऐसी  पीड़ा जो असहनीय हो तथा ऐसी महिलाएं बच्चे को अपमान सहना पड़े, घरेलू हिंसा के दायरे में आता है। घरेलू हिंसा पर शोध कर रहे विशेषज्ञ बताते हैं कि लॉक डाउन के दौरान दंपत्ति के सामने रोजगार की सुरक्षा से व्याप्त तनाव ,महिलाओं पर अतिरिक्त कार्यभार के कारण थकान से तनाव , विवाहेत्तर सम्बन्धो पर शक  ,मोबाइल से  अत्यधिक जुड़ाव ,आपस के झगड़े को बढ़ावा दे रहे हैं । बच्चों के स्कूल में अनिश्चितकालीन छुट्टियाँ ,पार्क में भी खेलने से मनाही आदि का नतीजा है घरेलू हिंसा ।बच्चे घरों में रहकर शोर-शराबा करते हैं आपस मे  झगड़ा मारपीट और गाली-गलौज का माहौल उत्पन्न होता है ,बाहर लोगों से भी मेल मिला पर प्रतिबंध लगा हुआ है, जिससे लोग अवसाद ग्रस्त होकर घरेलू हिंसा को अंजाम देते हैं।


इस संकट की घड़ी में भारत में घरेलू हिंसा में सुधार लाने के लिए सबसे पहले कदम के तौर पर यह आवश्यक होगा कि पुरुषों को महिलाओं के खिलाफ रखने के स्थान पर पुरुषों को इस समाधान का भाग बनाया जाए, मर्दानगी की भावना को स्वस्थ माइनों में बढ़ावा देने और पुराने घिसे पिटे ढर्रे से छुटकारा पाना जरूरी होगा। भारत सरकार ने महिलाओं और बच्चों को घरेलू हिंसा से संरक्षण देने के लिए घरेलू सहिंसा अधिनियम 2005 को संसद में पारित कराया है ।यदि किसी भी महिला को कोई रिश्तेदार प्रताड़ित करता है तो वह घरेलू हिंसा के तहत आता है। सरकार ने वन स्टॉप सेंटर जैसी योजनाएं प्रारंभ की जिनका उद्देश्य पीड़ित महिलाओं की सहायता करना है। कई जागरूकता अभियान भी चलाए गए हैं ।लॉक डाउन के समय घरेलू हिंसा से निपटने के लिए पुलिस की अलग विंग बनाने की जरूरत है। इस कार्य में सिविल डिफेंस के कार्यरत लोगों की सहायता ली जा सकती है।


राष्ट्रीय महिला आयोग ने घरेलू हिंसा पीड़ित की मदद के लिए 15 से अधिक गैर सरकारी संगठन की एक टास्क फोर्स बनाने का निर्णय लिया है ,ताकि महिलाओं को जरूरत के हिसाब से मदद की जा सके ।लॉक डाउन के दरमियान घरेलू हिंसा के मामले तीन गुना बढ़  गए हैं । बलात्कार व  बलात्कार के प्रयास के  मामलों में भी तेजी से वृद्धि हुई है ।मारपीट के मामले भी काफी बढ़े हैं ।जिनसे पीड़ित को मुक्ति दिलाना जरूरी है।अतः घरेलू हिंसा का निजी   स्तर व सरकारी पर समाधान  अति आवश्यक है क्योंकि हर किसी को स्वाभिमान से जीने का अधिकार मिलना चाहिए।


*सुषमा दिक्षित शुक्ला, लखनऊ


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