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कोरोना,किताबेँ और मैँ



*महेश शर्मा

क्या मैँ कहुँ कि , मेरे लिये अच्छे दिन आ गये ?

आप नाराज होंगे

सारा देश बल्कि सारी दुनिया आतंकित है

त्रासदी और खौफ मे एक एक दिन गुजर रहा है

हर कोइ स्तब्ध है

और मै घोषणा कर रहा हुँ कि

मेरे अच्छे दिन आ गये

मुझे माफ करेँ ये बात मै नही

मेरे घर की छोटी सी लायब्रेरी के

शेल्फ मे जमी किताबेँ कह रही है

वो मुस्कराते हुए मुझे बुला रही है

एक मगरुरियत के साथ लुभा रही है

( अब मुझसे बचके कहाँ जाओगे बच्चु )

क्योँकि मैंने कर दिया है उनके आगे

पुर्ण समर्पण

मैंने दे दिया है मेरा सारा समय उन्हे .

आप फिर कहेंगे किताबोँ मे क्या डुबे हो

घर , परिवार ,समाज और देश की सोँचो

उनके लिये कुछ करो

तो मित्रोँ यही तो मै कर रहा हुँ

इन्ही किताबोँ मे दर्ज है

हर समाज का हर काल का

घर परिवार का भी और हर इलाके का भी

सब कुछ

हमारी इच्छाएँ हमारी वासनाएँ

हमारी त्रुटियाँ हमारी लापरवाहियाँ

हमारे षडयंत्र भी और विद्वेष भी

और इनके परिणाम , इनसे पार पाने के तरिके

स्वनियंत्रण और परहित के लिये प्रोत्साहन

मुझे विश्वास है कि कोरोना काल के बाद

मैँ फिर लोटुंगा ज्यादा निखर कर

सम्पुर्ण द्रढता के साथ सकारात्मक सोँच

और सर्वजनहिताय भावना के साथ

ये किताबेँ मुझे सब कुछ देगी

*महेश शर्मा,धार


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