Subscribe Us

कहीं कानून-धर्म हो बेबस रहें है



*मोहित सोनी


कहीं फूल

कहीं पत्थर बरस रहें है

 

कहीं परिवार साथ है

कहीं लोग साथ को तरस रहें है

 

कहीं लोग दिल से उतर रहें

कहीं लोग दिल में बस रहें है

 

कहीं मातृभूमि का कर्ज उतार रहें तो

कहीं आस्तीन के सांप डस रहे है

 

कहीं कोई कर्तव्य से टस से मस नहीं होता

कहीं मानवीय मूल्य गर्त में धँस रहें है

 

कहीं राजनीतिक दाँव चलें जा रहें

कहीं धार्मिक पेंच फँस रहें है

 

कहीं शर्मिंदा है मानवता

कहींं अपनी करनी पर बेशर्म हँस रहें है

 

कहीं कोशिशें जारी है कर्मवीरों द्वारा जीत जाने की

कहीं ताने निकम्मे कस रहें है

 

कहीं बेख़ौफ़ कानून-धर्म से खेल रहा कोई

कहीं कानून-धर्म हो बेबस रहें है

 

*मोहित सोनी,कुक्षी (म.प्र.)

 


साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल  शाश्वत सृजन पर देखेhttp://shashwatsrijan.comयूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ