*संजय वर्मा 'दॄष्टि'
धड़कन से पूछता
जुबा नहीं होती
तो दिल का हाल
कैसे बया करती
तेरी नजदीकियां
बहारों से पूछता
बिन हवाओं
कौन रखता
खुश्बू का हिसाब
फूल नादाँ भोरें नादाँ
गुंजन कर
किसको देते संकेत
कही तुम तो नहीं निकल रही
आम के मोर और टेसू के फूल
झांक रहे
टहनियों की खिड़कियों से
लगता एक नया मौसम ला रहा
तुम्हारे आने का पैगाम
धड़कन की जुबा भी
अब गुनगुनाने लगी
बदलते मौसम में
दिल की धड़कन
बयां करती
तेरी नजदीकियां।
*संजय वर्मा 'दॄष्टि'.मनावर (धार)
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