*डॉ. अनिता जैन "विपुला"
सर्व कल्याण के लिए आस दीप जलाती हूँ
अज्ञान तिमिर मिटाने चरागाँ सजाती हूँ।
अँधेरों से है जो आच्छादित अभी तक
प्रकाश से उसी का रूप दिखाती हूँ।
सरलता और सादगी का करने सत्कार
जन जन में विवेक लौ जगाती हूँ।
ज्ञान की सदा होती रहे जयजयकार
यही सोच वृक्ष साहित्य का लगाती हूँ।
विजय पताका का सौरभ लहराने,
सुवासित हौसलों के पुष्प खिलाती हूँ।
न कोई ऊंचा-नीचा न ही छोटा-बड़ा
नेह भरे गीत समानता के गाती हूँ।
प्रिय ही प्रिय हो सदा इस वसुधा पर
प्रिय के लिए अपनी प्रीत निभाती हूँ ।
खुशियों के रंगों से सजे घर आँगन
प्रेम से इंद्रधनुषी रंगोली बनाती हूँ।
भूल न विपुला दीप जलाना मन महल में
विजयी योद्धा सा उत्साह अब पाती हूँ!
*डॉ. अनिता जैन "विपुला", उदयपुर
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