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अलविदा डॉक्टर



*डॉ तनूजा कद्रे


आज सुबह जब घर से निकला

होंठो की हसी घर छोड़ आया था

आंखों के आंसू अपने साथ लाया था

अब तक में बस डॉक्टर ही था 

पर सही मायने इस पेशे को,

अब समझ  पाया था

 

आज सुबह जब घर से निकला

वापस घर आऊंगा,सोच नहीं पाया था

छोटी सी बेटी का चेहरा जब सामने आया था,

"पापा जल्दी आना" उसने बुदबुदाया था

पत्नी से तो नज़रे न मिला पाया था

'पूरी कोशिश करूंगा',

मां  से बस यही बोल पाया था

 

आज सुबह जब घर से निकला

हॉस्पिटल पहुंचा ही था की

मरीजों की भीड़  ने हैरान कर दिया

कैसा महामारी का प्रकोप है,

इस सोच ने परेशान कर दिया

सरसराती एम्बुलेंस, दौड़ती हुई नर्सेस 

स्ट्रेचर पर और एक तड़पती हुई सांस

उस बुझती हुई नजर में जीने की आस

मेडिकल स्टाफ की दिन भर भागदौड़

और हर एक जिन्दगी को बचाने की होड़

 

आज सुबह जब घर से निकला

कुछ पल बैठा तो,

सामने एक कोने में मेरी नजर पड़ी थी

टिमटिमाती हुई नन्हीं एक जान,

पास ही में उसकी मां  थी खड़ी थी

उस मां की नजरो ने किया मुझे सवाल

बचालो डॉक्टर, बहुत  बुरा है हाल

मां की ममता ने मुझे झकझोर दिया

तुरंत ही मैने रुख आई. सी. यू की और किया

घंटों मशक्कत चलती रही

जीने की आस पलती रही

कुछ पल में  दिया बुझ गया

में सोचने लगा

ये किसकी गलती रही

 

आज सुबह जब घर से निकला

में टूटा था,में बिखरा था,थका था,उदास था

आंखे बंद थी सोच रहा था

ये कैसा प्रवास था

आंखे खुली,में आई. सी.यू  में था,

एक नर्स मेरे पास थी

में समझ गया

ना कल है ना,आज है, 

कल तक में सबकी फिक्र में था,

अब मेरी ही जिंदगी मौताज है।

 

आज सुबह जब घर से निकला..

समझ गया,अब ना जाऊंगा घर

कभी,छूट गए हैं, मेरे अपने सभी

कुछ समय में ,समा बदल गया

सुबह का सूरज सांझ  में ढल गया

जीवन का उजाला अंधेरे में बदल गया

जो सबकी रौशनी था,

अकेले ही जल गया

अकेले ही जल गया 

अलविदा डॉक्टर कहते

पत्थर भी पिघल गया

पत्थर भी पिघल गया। 

 

*डॉ तनूजा कद्रे,उज्जैन 

 

 


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