*अमृता श्रीवास्तव
सुनसान पड़ी इन गलियों सुनो ,
आवाज यह आएगी ,
थोड़ी सा धीरज रख लो आज ,
ज़िंदगी फिर से मुस्कायेगी !
तुममे हममे एक दुरी ,
जो है आज ,
सच मानो कल हट जाएगी ,
ज़िंदगी को गले लगाओ आज ,
कल फिर से वो मुस्कायेगी !
ज़िंदगी में लगेगें फिर से
हंसी ख़ुशी के मेले - ठेले,
वो दिन भी जल्द आएगा
फिर से लगेंगे रेले -पेले ,
कुछ दिन की मजबूरी है, ऐ दोस्त,
दूरी फिर से घट जाएगी।
ज़िंदगी को गले लगाओ आज ,
कल फिर से वो मुस्कायेगी !
संकट की इस बेला में,
विश्वास डगर पर चलना है ,
मन में रखना है उम्मीद प्रबल,
कोरोना से जमकर भिड़ना है,
संयम का हाथ पकडे रहेंगे ,
मुश्किल घड़ी भी टल जाएगी
ज़िंदगी को गले लगाओ आज ,
कल फिर से वो मुस्कायेगी !
*अमृता श्रीवास्तव,बैंगलोर
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