*अशोक 'आनन'
रे मनवा ! तू क्यों उदास है ?
ये ही दिन तो बहुत ख़ास हैं ।
बाहर तो सिर्फ पतझड़ पसरा है -
घर के अंदर खिला मधुमास है ।
सनातन धर्म ही विश्व विजयी होगा -
सबके मन में आज यही विश्वास है ।
देखना , डोर कभी नहीं वह टूटेगी -
सबके मन में जो आज आस है।
ज़ंग जीवन की यह भी तू जीत लेगा -
उखड़ी अभी कहां तेरी सांस है ।
खुशियां क्यों तलाशता है तू बाहर -
मन में प्यार का खिला अमलतास है ।
पल न लगा जिसने बुझा दी जीवन ज्योत -
नाम उस बैरी का लेना मुझे नहीं रास है ।
सूरज मानवता का यहां कभी नहीं ढला है -
एक किरण मानवता की सबके पास है ।
संकट का यह राहू काल भी गुज़र जाएगा -
धर्म - संस्कृति का फैला हर ओर उजास है ।
तन से चाहे कितनी भी दूर हम आज हों -
मन से तो हम आज भी पास - पास हैं ।
भारत इसमें भी सबका विश्व गुरू बनेगा -
दिया पड़ौसी ने आज हमें जो त्रास है ।
दर्द सह नहीं सकते हम आज उसका -
चुभी हमारे हृदय में आज जो फांस है ।
प्रभु ! हमें तू इस आपदा से शीध्र उबारना -
यही हमारी प्रार्थना , दुआ और अरदास है ।
दूरियां ये भी एक दिन पट जाएंगी ' आनन ' -
आपदा आई भी तो एक दम अनायास है ।
*अशोक 'आनन' मक्सी ,जिला - शाजापुर ( म. प्र .)
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