*हमीद कानपुरी
रफ्ता रफ्ता खो गया, दिल का चैन करार।
रफ्ता रफ्ता हो गया , मुझको उससे प्यार।
जब से मेरी हो गयीं , उससे आँखें चार।
मैं उसका बीमार हूँ , वो मेरी बीमार।
बुझा बुझा रहने लगा, तब से दिल ये यार।
जबसे उसने प्यारको,नहीं किया स्वीकार।
नहीं समझना तुम इसे,दिलबर का इंकार।
अक्सर होती है मियाँ, चाहत में तकरार।
उल्फत के झेले जहाँ, उसने झटके चार।
याद नहीं कुछ भी रहा,भूल गया घर बार।
*हमीद कानपुरी,
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