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"भीड़ लगाना ठीक नहीं" - डिजिटल काव्य गोष्ठी


देश में लॉकडाउन की स्थिति को देखते हुए परम्परा संस्था, गुरुग्राम द्वारा एक अनूठी 'डिजिटल गोष्ठी' का आयोजन रविवार, दिनांक 29 मार्च को किया गया। इसमें अपने-अपने घरों से ही मोबाइल एवम कम्प्यूटर के माध्यम से कविताएं सुनाकर, गोष्ठी सफलतापूर्वक आयोजित की गई । गोष्ठी की अध्यक्षता आकाशवाणी के पूर्व उप महानिदेशक श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेई ने की। परम्परा के संस्थापक राजेन्द्र निगम "राज" ने बताया कि इस गोष्ठी में कोरोना वायरस से लड़ने हेतु जागरूकता फैलाने वाली रचनाओं के साथ ही अन्य विषयों पर भी रचनायें प्रस्तुत की गईं।


लगभग डेढ़ घंटे तक चली इस विशेष गोष्ठी का डिजिटल संचालन राजेन्द्र निगम "राज" द्वारा किया गया। कवियों द्वारा प्रस्तुत की गई कविताओं की एक बानगी इस प्रकार है-


1. श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेई-
     "थोड़े पानी की ख़ातिर गरीबी,
      रोज ही इक कुआँ खोदती है
      क़ैद घर में हुए तो ये सोचा
      कब से पिँजरे में चिड़िया फँसी है"
     
3. श्री प्रेम बिहारी मिश्रा-
     "शहरों के ग्लेमर में फँसकर, खोया अपना चैन सुनो
      अपने काँधों पर ही अपनी, अर्थी ढोते खुशी-खुशी"
      
4. श्रीमती ममता किरण-
  "जब भी हद से बढ़ा आदमी है,पाठ कुदरत पढ़ाती रही है
   ज़िंदगी क़ैद है अब घरों में, बस दरीचों से वो झांकती है
  मौत हो या कि फिर हो कोरोना,कितनी बेख़ौफ़ ये मुफ़लिसी है
    
6. श्री अनिल वर्मा "मीत"-
     "कैसे सुकून हश्र के साँचे में ढ़ल गये
      बदले ज़रा जो हम तो ज़माने बदल गये
      जब डूबने का ग़म था हमें बहरे-इश्क में
      हर मौज यूँ उठी कि सफ़ीने संभल गये"


6. श्री मनोज अबोध-
    "मन करता है सच सच कह दूँ, लेकिन कहने देगा कौन
      करके बैर मगरमच्छों से, जल में रहने देगा कौन
      धाराओं के संग संग बहना, तो मेरी मजबूरी है
      उल्टा बहना चाहूँ तो भी, मुझको बहने देगा कौन"
      
8. श्रीमती रूबी मोहन्ती-
    "भीतर की स्त्री, मेरे भीतर है, मेरे मन की स्त्री,कहती है प्रायः
    एकांत में मुझसे-तन के भूगोल से परे, रसोई से हटकर,
    बिस्तर से जुदा, मेरा भी एक अस्तित्व है!"
    
9. श्रीमती इन्दु "राज" निगम-
     "आज हम सब एक गर हो जाएंगे,
       ज़िन्दगी को राह पर ले आएंगे,
       ये मुसीबत आई है टल जाएगी,
       फिर सुनहरे दिन पलट कर आएंगे।"
     
10. श्री राजेन्द्र निगम "राज"-
       "दिल से दिल के तार मिला लो, हाथ मिलाना ठीक नहीं
         माना हैं ज़ज़्बात बहुत पर, गले लगाना ठीक नहीं
         राशन, दूध, दवाई हो या, मास्क, सैनिटाइजर, सब्ज़ी
         कैसी भी मुश्किल हो लेकिन, भीड़ लगाना ठीक नहीं" 
         
अन्त में परम्परा की संयोजिका श्रीमती इन्दु "राज" निगम के धन्यवाद ज्ञापन के साथ ही गोष्ठी का समापन हुआ। ज्ञात हो कि डिजिटल गोष्ठी की परिकल्पना एवम तकनीकी सहायता श्री अनिमेष निगम द्वारा प्रदान की गई।


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