*संजय वर्मा "दॄष्टि"
ना घर ,ना घौंसला
मुंडेरो और कुछ बचे पेड़ों पर
बैठकर गौरय्या ये सोच रही कि -
इंसानों को रहने के लिए
कुछ तो है मेरे देश मे
सीमेंट कांक्रीट के मकान होने से
क्या मेरे लिए कुछ भी नहीं है
मेरे शहर मे |
ची -ची बोल के
बुद्दिजीवी इंसानों से
कह रही हो जैसे
इंसानों के हितो के साथ
हमारे हितों का भी ध्यान रखो
क्योकि हम गौरय्या पक्षी है |
कई प्रकार के विकिरण के प्रभाव से
वैसे ही हमारी प्रजाति कम हो रही है
नहीं तो गाते रह जाओगे
" छु न -छु न करती आई चिड़िया
दाल का दाना ले चिड़िया। ... "
और यही सवाल अनुतरित बन
रह जायेगा महज किताबों मे
और नन्हे बच्चों के दिलो में
*संजय वर्मा "दॄष्टि" ,मनावर (धार )
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