*डॉ. मनोहर अभय*
आँधी पानी झेल रहे
पौधे तुलसी के
सूरज तुम देखा करते
नाच नए उजियारे का
है प्रकाश की फसलों पर
पहरा अँधियारे का
जाने कब मुस्काएँगे
नील- कुसुम अलसी के|
खाली आँखों से झरता है
झर- झर खारी नीर
उधर डिनर में परस रहे
शाही मटर पनीर
कुशन बदलना चाह रहे
लंगड़ी कुर्सी के |
कथा- भागवद सुनते आए
भूखी सदियों से
लिखवाएँगे जनम कुंडली
प्यासी नदियों से
बैठे ठाले सुने जा रहे
भजन भगत नरसी के |
विहग लौट आए हैं
लिए गगन के सपने
किसे सुहाते पीछे छूटे
धरती के अपने
बटन टाँकने बैठा दर्जी
जर्जर जर्सी के |
उखड़ी- उखड़ी घूम रही
रंगी- पुती तितली
लिए गंध की भारी गठरी
खड़ी केतकी इकली
कुचल गए गजराज
सरसिज सरसी के|
बिसरे हुए दिन याद आते
चौड़े चबूतरे पर
जेबरी बट रहे कक्का
जाति के विजाति के
चिलम पी रहे हुक्का
राजी खुशी पूछते
बतियाते|
सामने मंदिर बड़ा
सेंजने का पेड़
हरे- पीले पत्ते चबातीं
बकरियाँ औ 'भेड़
खेलते बच्चे
पतंगें उड़ाते |
लम्बी दुआरी पार
बरोसी रौस पर धरी
सुलगते अँगारों पर
हड़िया दूध की चढ़ी
बिलोएगी दही अम्मा
माखन निथारते |
घुप अँधेरे में
चलने लगीं चाकियाँ
पीसतीं बेझर पुरानी
द्योरानी जिठानी काकियाँ
खनकती चूड़ी
कँगन खनखनाते |
रसोई में धुआँ
रोटी सेकतीं दुलहिनें
झाड़ू बुहारू में लगीं
छोटी- बड़ी बहिनें
थक गए हाथ
अँगना बुहारते |
समय व्यालू का हुआ
चँदिया खाएगी बछिया
थालियों में परोसी
रोटी साग भुजिया
जींवनें आ रहे दद्दू
खाँसते मठारते |
*डॉ. मनोहर अभय
प्रधान संपादक अग्रिमान
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