*शिव कुमार 'दीपक'*
माखन के वे दिन कहां, कहां नंद के लाल ।
मोबाइल के लालची, आज बाल गोपाल ।।
आज बाल गोपाल, दही माखन को भूले ।
मोबाइल में गेम, गीत सुन सुनकर फूले ।।
गुटका पान पराग, शौक उनके बचपन के ।
'दीपक'आते याद,दिवस मिश्री माखन के ।। -1
'होरी' आया शहर में, हुआ गांव से तंग ।
काम कोठियों में मिला, पोत रहा है रंग ।।
पोत रहा है रंग, साथ बेटा गोबर है ।
सोने को फुटपाथ, ओढ़ने को चादर है ।।
हाथ बटाती रोज, साथ पत्नी है भोरी ।
सबने पाया काम,शहर में खुश है होरी ।।- 2
समता की सौहार्द की, बड़ी जरूरत आज ।
धर्म-द्वेष की आग में, जलने लगा समाज ।।
जलने लगा समाज, आग बढ़ती जाती है ।
घूम रहे बेखौफ, जिन्हें हिंसा भाती है ।।
पड़ी, संत रैदास , तुम्हारी आवश्यकता ।
हमें चाहिए प्रेम , और आपस में समता ।।-3
घर का मुखिया हो अगर, दीन-हीन कमजोर ।
या फिर दारूबाज हो , या हो सट्टाखोर ।।
या हो सट्टाखोर , कबाबी और जुआरी ।
कैसे वह परिवार, कहा जाए संस्कारी ।।
वह बेचारा पात्र , नहीं होता आदर का ।
मुखिया से माहौल, बिगड़ जाता है घर का ।।-4
तोते सारे बाग के , माली रहा उड़ाय ।
दो पग वाले बैठ कर, रहे फलों को खाय ।।
रहे फलों को खाय,न कोई उनको खटका ।
माली है बेभान, इन्हीं तोतों में अटका ।।
उजड़ेगा यह बाग, इन्हीं चोरों के होते ।
माली अब तो चेत , उड़ा मत केबल तोते ।।-5
घर आए आनंद से, मत नाहक मुख मोड़ ।
अन्न मिला है भाग्य से,थाली में मत छोड़ ।।
थाली में मत छोड़ , अन्न जीवन देता है ।
क्रोध रोष को रोक, ज्ञान को हर लेता है ।।
रहे धीर गंभीर , सही निर्णय ले पाए ।
अमन-चैन सुख-प्रेम,स्वतःउसके घर आए ।।-6
करिए हर कोशिश यही, टले रार तकरार ।
हँसी-खुशी पलती रहे, रहे दिलों में प्यार ।।
रहे दिलों में प्यार,थाम कर चलिए उंगली ।
हँसो, उठेंगीं साथ , रोइए, होगी एकली ।।
दुख देता एकांत ,जमाने का दुख हरिए ।
रहे जमाना साथ, काम ऐसे ही करिए ।।-7
सोतीं भूखी आज भी, कई करोड़ों जान ।
मगर उन्हीं के पास है, बचा हुआ ईमान ।।
बचा हुआ ईमान, और सब कुछ खोया है ।
मेहनतकश इंसान , गरीबी में रोया है ।।
संसद में भरपेट , भूख पर चर्चा होतीं ।
'दीपक' फिर भी देख,जिंदगी भूखी सोतीं ।।-8
रोटी कपड़ा हो न हो, ना हो भले मकान ।
खड़े धर्म के नाम पर, बंदूकों को तान ।।
बंदूकों को तान, विरुद्ध खड़े भारत के ।
गंवा रहे हैं जान, ख्वाब पाले जन्नत के ।।
'दीपक' पाकिस्तान,चल रहा चालें खोटी ।
बांट रहा बंदूक, नहीं खाने को रोटी ।।-9
हारा वह जिसके यहां ,था कोई गद्दार ।
घर के भेदी ने किए, घर के बंटाढार ।।
घर के बंटाढार , किए घर के लोगों ने ।
दिए उन्हींने भेद, सहे अन्याय जिन्होंने ।।
'दीपक' खुफिया तंत्र,जहां चौकस था सारा ।
साक्षी है इतिहास, कभी वह जंग ना हारा ।।-10
सुंदर हो मधु गंध हो,खींचे सबका ध्यान ।
माली ऐसे फूल को , देता है सम्मान ।।
देता है सम्मान, योग्यता को कोई भी ।
शोभा बनते फूल, मूर्ति मंडप अर्थी की ।।
देगा 'दीपक' छोड़ ,फूल में अगर कसर हो ।
चुना गया वह फूल , गंध जिसकी सुंदर हो।।-11
लंकापति को आज तक, मार न पाए राम ।
उठा-उठा सिर दीखता, यहां वहां हर ठाम ।।
यहां वहां हर ठाम , रूप रावण के दिखते ।
कवि लेखक हर वर्ष,जल गया रावण, लिखते ।।
'दीपक' बारंबार , यही होती है शंका ।
किस रावण को मार, राम ने जीती लंका ।।-12
मानवता रोती रही, सहे नियति के डंक ।
पलता रहा समाज में, अनाचार आतंक ।।
अनाचार आतंक , बढ़ा तब लोग लड़े हैं ।
अब भी उनका जोश, हौसले बढ़े चढ़े हैं ।।
दीपक अपने पास, करो पैदा वह क्षमता ।
डर का होवे अंत, फले फूले मानवता ।।-13
पाले थे क्यों आपने, आस्तीन के सांप ।
काट लिया तो आपकी, रूह गई है कांप ।।
रूह गई है कांप, डरे हो , पछताते हो ।
पालोगे अब श्वान, हमें क्यों बतलाते हो ।।
'दीपक' होते ठीक, श्वान फिर भी रखवाले ।
सहता है खुद डंक, सांप जिसने हों पाले ।।-14
माटी का दीपक बना, बाती जिसके प्राण ।
स्नेह जल रहा उम्र का,लौ जिसकी मुस्कान ।।
लौ जिसकी मुस्कान,सुखद आलोक लुटाती ।
खर्च रही है कोष, सांस हर आती जाती ।।
दीपक ही है श्रेष्ठ, दीप्ति जिसकी परिपाटी ।
प्रतिफल दिव्यप्रकाश, शेष है, सो है माटी ।।-15
*शिव कुमार 'दीपक',बहरदोई, सादाबाद,हाथरस (उ० प्र०)मो- 8126338096
Email-kavishivkumardeepak@
शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-
अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com
या whatsapp करे 09406649733
0 टिप्पणियाँ