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लाल किले के बुर्ज से हुए बहुत व्याख्यान



*डॉ. मनोहर अभय*


सुनो  हमारे  गाँव में होना  है बदलाव
मीठी नदियाँ आ रहीं पीने को तालाव



पीट -पीट कर कह रहे बदले बहुत नसीब .
ढोल पिटे ढोलक पिटी  पीटता रहा गरीब



इस गुलेल के खेल में बुलबुल हुई शिकार
चील  झपटा  मारती  गीध  करें  संहार



मछली उछली ऊजरी भरे सुनहरी ताल
खड़ी मछेरी हँस रही डाल सतरंगे जाल



खँडहर में टूटा पड़ा अन्धकार विकलाँग
चलो सूर्य के पाँखुरे मारें एक छलाँग



लाल किले के बुर्ज से हुए बहुत व्याख्यान
खुशहाली के ख्वाब थे जंग लगे फरमान



झेल रही सँकरी गली अँधियारे की मार
चौड़ी सड़कें पी गईं चकचौंध उजियार



रखिए आप संभाल कर तमगे और  खिताब
हमें  चाहिए  आपके  खाता   बही  हिसाब



पकड़ कलाई मेघ की, वरखा लौटी देश
शरद सुखाने में लगी, दूधों धोए केश

*डॉ. मनोहर अभय
प्रधान संपादक अग्रिमान  
आर.एच-111, गोल्डमाइन
138-145, सेक्टर - 21, नेरुल, नवी मुम्बई - 400706,
चलभाष: +91 916 714 8096
(manoharlal.sharma@hotmail.com )


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