Subscribe Us

अब हर रोज़ उनसे मुलाकात नही होती



*सपना परिहार*


अब हर रोज़ उनसे मुलाकात नही होती,
हर छोटी-बड़ी कोई खास बात  नही होती।

कुछ  मसरूफ़ वो भी है,कुछ समय हमारे पास भी नही,
दूर रहने की वजह  भी कोई
ख़ास नही,
चंद लम्हों की भी अब बरसात नही होती,
अब हर रोज उनसे मुलाकात नही होती।


पहले आते-जाते दुआ सलाम हो
जाती थी,
उनकी मुस्कान देख दिन की शुरुआत  हो जाती थी,
अब नजरें-इनायत सुबह -शाम नही होती,
अब उनसे रोज मुलाकात नही होती।

कभी ख़यालो में जिक्र हुआ करता था तुम्हारा,
तुम्हारे साथ नाम जुड़ा करता था
हमारा ,
उस दौर की हर वो बात आज नही होती,
अब उनसे हर रोज मुलाकात नही होती।

कुछ उनकी मजबूरी है,कुछ मेरी
जिम्मेदारियां है,
कुछ वक्त की पाबंदी है ,कुछ हालात की मजबूरियाँ है,
शिकवों-शिक़ायत की अब हर वो बात नही होती,
अब उनसे हर रोज़ मुलाकात नही होती।

याद वो भी करते है,याद मुझे भी आती है,
कुछ खट्टी-मीठी याद ज़ेहन में
तरोताजा हो जाती है,
हर एक "ख्याब"की ताबीर नही होती,
अब हर रोज उनसे मुलाकात नही होती ।

*सपना परिहार, नागदा ज. उज्जैन






















शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-


अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com


या whatsapp करे 09406649733







एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ