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उस ठिकाने का पता करती है (गजल)



*नवीन माथुर पंचोली*


साथ मौसम के रहा करती है।


रोज़ अहसान  हवा करती है।


 


मौज,परवाज़ ,लहर की तरहाँ,


आसमानों में   उड़ा करती है।


 


साथ लेकर वो घटाएँ कितनी,


वो जहाँ भर में बहा करती है।


 


बाग से फूलों की ख़ुशबू लेकर,


इन फ़िज़ाओं से मिला करती है।


 


जिस किसी राह पर ठहरना है,


उस ठिकाने का पता करती है।


 


*नवीन माथुर पंचोली,अमझेरा धार मप्र,मो.9893119724


 



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