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त्रिपुरा हाई कोर्ट का प्रशंसनीय निर्णय पशु बलि पर रोक





*डॉ अरविन्द जैन*


आज कल हर काम के लिए हमें न्यायालय का सहारा लेना पड़ रहा हैं .जो काम व्यक्तिगत ,सामाजिक ,धार्मिक स्तर पर किया जा सकता हैं उस काम के लिए न्यायालय निर्णय ले यह कहाँ तक उचित हैं? .त्रिपुरा हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर निर्णय दिया हैं की त्रिपुरा राज्य में दो प्रमुख मंदिरों देवी त्रिपुरेश्वरी मंदिर और चतुरदास देवता मंदिर में बड़ी संख्या में बलि दी जाती हैं ,इसलिए उन मंदिरो में सी .सी .टी .वी. भी लगाई जावे और राज्य के अंदर किसी भी मंदिर में पशु पक्षी की बलि देने की इज़ाज़त नहीं होगी .जिसकी बहुत सरहाना हो रही हैं और इसी क्रम में ईद के समय पर होने वाली पशुबलि पाबन्दी को लेकर भी आदेश देना चाहिए .इससे सबको सहमत होना चाहिए.
वास्तव में कोई भी देवी देवता किसी भी बलि से न प्रसन्न होते हैं और न देने पर कुपित ,पर धार्मिक मान्यताओं की आड़ में मनोरंजन के तौर पर भी यह कदम उठाया जाता हैं .बलि देना यानी किसी जीव की हत्या करना .जीव में पशु पक्षी के अलावा नर बलि का भी चलन हैं पर वह अन्य की ,स्वपूत या परिवार की नहीं !ऐसा क्यों ?अपने परिवार की दे तो समझ में आये हिंसा /बलि किसे कहते हैं .इसमें हमें सहानुभूति की नहीं समानुभति का भाव रखना चाहिए .कोई भी जीव मरना नहीं चाहता और जैसा दुःख ,कष्ट हमें होता है  वैसा उन्हें भी होता हैं पर वे मूक होने के अलावा पराधीन होने से उनको सहन करना पड़ता हैं .उन्होंने पशु बनकर क्या कोई अपराध किया हैं ?
पशुबलि और मांसाहार ,अंडा मछली और शराब का व्यापक स्तर पर चितन की जरुरत हैं .पशुबलि किसलिए दी जाती हैं ?अपनी मनोकामना पूरी करने और सुख शांति के लिए.मनोकामना इच्छा पूर्ति असीमित होती हैं उनकी कोई पूर्ति नहीं कर सकता और सुख शांति ,धन वैभव प्रत्येक जीव  को उसके पुण्य पाप के कर्मों के फल अधीन हैं .जैसा की कहा गया हैं की समय से पहले और किस्मत से ज्यादा  न किसी को मिला हैं और न किसी को मिला हैं . मांसाहार मछली  अंडा शराब आदि का प्रचलन व्यक्तिगत ,पारिवारिक ,जातिगत  जिव्हालोलुपतावश ,अन्य की देखा देखी करते हैं .उनमे यदि हम समानुभूति पूर्ण नजरिया रखेंगे तो संभवतः उनको छोड़ने में हम विवश हो सकेंगे .पर हम इतने कठोर हृदय हो चुके हैं की हमारी मानवीय संवेदनाये मृत हो चुकी हैं .जब हम असाध्य रोगों से ग्रस्त होने पर क्यों उनका परहेज़ रख कर खिचड़ी दाल चांवल पर आते हैं ?यानी ये सब हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं .
हाईकोर्ट त्रिपुरा का निर्णय अनुकरणीय हैं और यह अपेक्षा हैं की यह नियम पूरे भारत में लागू हो जावे तो वास्तव में भारत अहिंसा प्रिय देश कहलाने का गौरव का हक़दार हैं वर्ना वैसे भी हम मांस चमड़ा निर्यात में विश्व में  नंबर एक हैं .



*डॉ अरविन्द प्रेमचंद जैन ,संरक्षक शाकाहार परिषद् A2/104  पेसिफिक ब्लू, नियर डी मार्ट, होशंगाबाद रोड, भोपाल 462026  मोबाइल 09425006753





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