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शरद का चांद (दोहे)






 *प्रो.शरद नारायण खरे*
चंदा देता चांदनी,देता शीतल नेह ।
पुलकित तन हर एक के,उल्लासित है देह ।।

शुभ्र ज्योत्सना है मधुर,छेड़े मधुरिम राग ।
ऐ मेरे अनुराग अब,क्योंकर ना तू जाग ।।

अमिय बरसता है सतत्,अब तो सारी रात ।
प्रकृति दे रही ऐ 'शरद',यह नेहिल सौगात ।।

उजला सबका तन हुआ,मन भी निखरा ख़ूब ।
हर इक श्रंगारिक हुआ,गया नेह में डूब ।।

जीवन का आनंद यह,जीवन का है सार ।
पूरणमासी यह प्रखर,है रोशन संसार ।।

आज कलाधर काम है,मारे तीखे तीर ।
जिनके मन कोमल 'शरद',घायल हुये शरीर ।

यमुना तट पर गोपियां,जुटीं कन्हैया संग ।
रास रचाते मुक्त हो,नृत्य-राग के रंग ।।

उजियारा जीवन रहे,कहे पूर्णिमा आज ।
अँधियारे में डूबकर,दर्द न गहे समाज ।।

"शरद पूर्णिमा" दोस्तो,है सचमुच वरदान ।
मिले हर इक को वर्ष भर,जीने का सामान ।।

सुख का पल फिर से मिला,ईश्वरीय संयोग ।
आओ हम बिखरें नहीं,बन जाये बस योग ।।



 *प्रो.शरद नारायण खरे,मंडला(मप्र)मो.9425484382







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