Subscribe Us

रावण दहन (व्यंग्य)







*संजय जोशी सजग*


 रावण  का दहन बुराई के प्रतीक रूप में किया जाता है हम यहीं सब तो  सुनते आ रहे और सुनाते भी जा रहे है l पर बुराई ने तो हद ही कर दी है दिन दूनी और रात  चौगुनी  गति से बढ़  रही है ,बुराई अजर -अमर है और होलिका की तरह  ही फायर प्रूफ है l  दहन  तो हर वर्ष होता है और इसका धुँआ एक  बुराई नामक  वाइरस को वायुमंडल में फैला देता है और द्विपादिय  प्राणी  मनुष्य उसका शिकार  हो जाता है l


विजया दशमी आते ही रावण मतलब बुराई को जलाने वाले ,अपने -अपने क्षेत्र में बुराई का पुतला जलाने की कमर कस लेते हैं और बहस का दौर चल  पड़ता है मुख्य चिंता का विषय रावण का कद रहता है उससे ही तो बजट बनता है l वे लोग इस चिंता में चिंतित रहते है कि  उनकी बुराई  की ऊंचाई  की लम्बाई कम न  रह जाए , बुराई तो बुराई  ही  होती और जलती कहां है इसमें कोई कसर न रह जाए इसके लिए वे सभी मुस्तैद रहते है lअर्थ बिना सब व्यर्थ  को ध्यान  में रखकर , मुख्य अतिथि मतलब मुख्य अर्थ दाता ,अर्थ देकर यह मौका अपने हाथ से जाने देना नहीं  चाहता और येनकेन प्रकारेण  उसे हथि याने की कोशिश में चमचे लग जाते  है नकली राम ,लखन और हनुमान को नाम के अनुरूप चुनना संस्था  की मजबूरी रहती है बहस पर बहस के बाद सब कुछ मन से कुछ बेमन से मना लिए जाते है और समय तो मुख्य अतिथि पर  ही निर्भर  रहता है वह आएगा जब ही रावण दहन होगा  न अत; उसको पूछ कर सब जुगाड़ के बाद आखिर  वह दिन आता है और रावण दहन का कार्यक्रम सम्पन्न हो जाता है लेकिन कई अनुत्तरित  प्रश्न  छोड़ जाता है --


पिछले वर्ष के चर्चित स्थानों  के  रावण दहन के समाचर जो हेड लाइन बनें  ---  एक झलक -


-मात्र पांच मिनिट  में ही राख हुआ बुराई का प्रतीक  रावण का पुतला l 


- रावण के पुतले में पटाखों   की कमी से देखने आये लोगों में असंतोष की लहर 


- आतिशबाजी दर्शकों  को मोहित करने में असफल ,दर्शकों  में निराशा l 


- राम हनुमान  ठगे से रह गए जब एक नेताजी ने रिमोट से रावण दहन कर दिया l 


- आजकल देखने आने वालों   की  संख्या में भारी गिरावट l 


और  इस तरह की  कई घटनाऐं होती है जिससे  रावण के दहन पर बहस के मुद्दे बन जाते है और किसी में स्वार्थ तो कहीं  भ्रष्टाचार  की बू  आने लगती है एक दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर  नही छोड़ते l बुराई के अंत की जगह और बुराई पनप जाती है और पुतले जलाकर  समस्या हल करवाने वालों   के मुगालते दूर हो  जाते है फिर भी पुतले जलाना हमारा एक मिशन बन चुका है ,कुछ भी हो जाए पहले पुतला जलायेंगे  l 


 रावण दहन पर हर स्तर पर बहस होती है सब के अपने -अपने तर्क है पर बुराइयों का अंत कब होगा इस पर सार्थक बहस अपनी राह अँधेरी सुरंग में ढूंढ रही है यह  कब सफल होगी यह तो कोई नही कह सकता l बुराई को सहना और करना दोनों ही एक सिक्के के पहलू  है l चले थे बुराई का दहन करने और खुद बुराइयों में उलझ गए l 

*संजय जोशी सजग, रतलाम








शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-


अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com


या whatsapp करे 09406649733



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ