म.प्र. साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा नारदमुनि पुरस्कार से अलंकृत

नवरात्रि का अशक्त जागर(कविता)




 


*मच्छिंद्र भिसे*


हे माँ आदिशक्ति !


तू अचानक सबको क्यों जगाती है?


नवरात्रि के जब दिन आए, 


तब सबको तू याद क्यों आ जाती है.


अब नारी शक्ति का होगा बोलबाला,


हो बच्ची, बालिका, सबला या अबला,


नौ रोज नारियों के भाग जग जाएँगे,


सभी को माता-बहन कहते जाएँगे,


पूजा की थाल भी सजेगी,


माता-बेटी-बहन की पूजा भी होगी,


ठाठ-बाट में समागम होंगे,


बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ सब कहेंगे,


नारी को हार-फूल से पुचकारेंगे,


नवदुर्गा, नवशक्ति नव नामकरण करेंगे,


कहीं गरबा तो कहीं डांडियाँ बजेगा,


माँ शक्ति के नाम कोई भोज तजेगा,


रोशनाई होगी, होगी ध्वनि तरंगे,


तीन सौ छप्पन दिन का नारी प्रेम


पूरे नौ दिन में पूरा करेंगे,


आरती कोई अबला या सबला उतारेगी,


अपने-आपको धन्य-धन्य कहेगी,


हर नारी नौ दिन जगत जननी कहला एगी,


बस! नौ दिन ही तू याद सबको आ जाएगी.


परंतु ?


हे माँ आदिशक्ति!


नौ दिन का तेरा आना,


फिर चले जाना,


दिल को ठेस पहुँचाता हैं,


नौ दिन के नौ रंग,


दसवे दिन बेरंग हो जाते हैं,


और भूल जाते हैं सभी,


तेरे सामने ही किए सम्मान पर्व.


अगले दिन पूर्व नौ दिन की नारी,


हो जाती है विस्थापित कई चरणों में,


कभी देहलीज के अंदर स्थानबद्ध,


देहलीज पार करें तो जीवन स्तब्ध,


दिख जाती है कभी दर-सड़क किनारे,


पेट के सवाल लिए हाथ पसारे,


कभी बदहाल बेवा बन सताई,


तो शराबी पति से करती हाथा-पाई,


कही झोपड़ी में फटे चिथड़न में,


एक माँ बच्चे को सूखा दूध पिलाती,


बेसहारा औरत मदत की गुहार किए


चिलपिलाती धूप में चिखती-चिल्लाती,


कभी तो रोंगटे खड़े हो जाते है,


जब अखबारवाले तीन साल की मासूम


बलात्कार पीड़ित लिख देते हैं,


आज दो टूक वहशी-अासूर,


न जाने किस खोल में आएँगे,


कर्म के अंधे वे सब के सब


न उम्र का हिसाब लगाएँगे,


हे शक्तिदायिनी!


माफ करना मुझे,


मैं आस्तिक हूँ या नास्तिक पता नहीं,


तेरे अस्तित्व पर आशंका आ जाती है,


सुर में छिपे महिषासुरों को हरने


क्यों कर न तू आ पाती है?


आज की नारी का अवतार तू,


हो सकती ही नहीं,


नहीं तो चंद पैसों के लिए,


दलालों के हाथ बिकती ही नहीं,


नारी शक्ति तेरी हार गई है,


सुनकर संसार की बदहालात को


कोख में ही खुद मीट रही हैं,


कुछ लोग तो जानकर बिटिया,


कोख में मार डाल देते हैं,


शायद भविष्य के डर से,


जन्म से पहले स्वर्ग ही भेज देते हैं,


क्या उनका यह सोचना गलत है,


यदि हाँ!


तो तेरा होना भी गलत है.


लोगों की सोच बोलो कैसे बदलेगी?


फिर दिन बीत जाएँगे


नवरात्रि का अशक्त जागर,


दुनिया पुन: पुन: खड़ा कर जाएगी.


हे ! माँ आदिशक्ति


तू फिर सबको क्यों जगाती है,


नवरात्रि नारी सम्मान का पर्व आया,


तू सबको याद क्यों दिलाती है


फिर वही रंग और बेरंग का,


डांडिया खेल शुरू कर जाती है,


नवरात्रि के दिन जब आए,


तब सबको क्यों याद आ जाती है?


*मच्छिंद्र भिसे,सातारा (महाराष्ट्र),मो. 9730491958




शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-


अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com


या whatsapp करे 09406649733


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ