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ख्वाबों के परिंदे (कविता)






*मीरा सिंह 'मीरा'*
ख्वाबों के परिंदे
आंखों में समा जाते हैं
मन की साख पर बैठ
जीवन का तराना गाते हैं
चोरी चोरी चुपके चुपके
मायूसी रुखसत होती है
भोर की नव किरणों संग
खुशी की आहट आती  है
ठंडी  पुरवाई बहती है
बिखरी  जुल्फें समेट
निशा  विदा लेती है
उमंगे लेती है
मन में हिलोरें
छँट जाते हैं
मायूसी के कोहरे/
ख्वाबों के कुछ परिंदे
आंखों में समा जाते हैं
गूंज उठती है शहनाई
मौसम सुहाना कर जाते हैं ।

*मीरा सिंह 'मीरा',प्लस टू महारानी ऊषारानी बालिका उच्च विद्यालय डुमराँव जिला बक्सर बिहार 802101






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