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जिसकी लाठी उसकी भैंस











*डॉ अरविन्द जैन*
यह बात सनातन सत्य हैं की हर युग में शासकों ने अपने अपने कार्यकाल में अपने निजियों ,सम्बन्धियों  और विचार धाराओं वालों का उपकृत किया था और यह जरुरी भी होता था ,कारण वे उस शासक के भक्त /पिछलग्गू हो जाते थे .जिनको राजाश्रय मिलता था उनका सम्मान स्वाभाविक रूप से समाज , सत्ता में बढ़ जाता था .उनकी क़द्र भी होने लगती हैं .
स्वामीप्रसादः सम्पदं जनयति न पुनरभिजात्यम पाण्डित्यं वा !
स्वामी की प्रसन्नता से सम्पत्ति प्राप्त होती हैं ,कुलीनता और बुद्धिमत्ता से नहीं . इसी कारण शासक लोगों के यहाँ चाटुकारों ,कवियों की होड़ लगी रहती थी की कौन कितने नजदीक पहुंचे और वे नवरत्नों में गिने जावे .यह क्षेत्र इतना व्यापक होता हैं की इसमें शासक की कृपादृष्टि होना अनिवार्य हैं .बिना राजा के प्रसन्नता से कुछ नहीं होता और जो राजा द्वारा दण्डित होता हैं वह सब जगह से तिरस्कृत होता हैं जैसे चिदंबरम .वर्तमान शासन इस बात पर कटिबद्ध हैं की जब तक सत्ता शीन हैं जितने अधिक से अधिक लोगों को कृतार्थ कर दे जिससे आगामी काल में शासक के गुणगान करने वाले पुरुस्कृत तो कम से कम रहेंगे .कारण कोई भी किसी को खुश नहीं कर सकता हैं .जैसे गुलाब के फूल को आप प्रेमिका के गालों में सैंकड़ों बार रगड़ों तो उसे घाव हो जायेगा .हालांकि वह गुलाब का फूल हैं .इसी प्रकार सरकार से सब खुश नहीं रह सकते .विपक्ष तो कभी नहीं पर पक्षधर भी नहीं हो पाते.
जिनको मंत्री पद दिया गया था उनका पत्ता साफ़ कर दिया गया तो वे अप्रतक्ष्य में नाराज़ हो जाते हैं ,इसका मतलब संतुष्टि की कोई सीमा या बंधन नहीं हैं .वर्तमान में सरकारी सम्मान बहुत दरियादिली से बांटे या दिए जा रहे हैं ,इस कारण उनका महत्व कुछ कम होता जा रहा हैं .राजनैतिक ,सामाजिक ,साहित्यिक ,धार्मिक वैज्ञानिक क्षेत्रों में काम करने वाले बहुत होते हैं पर सबको सम्मानित करना संभव नहीं हैं पर उनको सम्मान मिल जाता हैं जो केंद्र के नजदीक होते हैं .अन्यथा परिधि में तो सभी चक्कर लगा रहे हैं .
अब तो सरकार भारत के सर्वोच्च सम्मान उनको  भी देने में चूक नहीं कर रही हैं जिनका तत्समय शासन के विरोध में गतिविधियां रही और जिनको उस कारण कारावास भोगना पड़ा पर वर्तमान में उस विचार धारा के कारण वे पूजनीय हो गए .इस आधार पर सरकार चाहे तो अपनी विचार धारा को मानने वालों को कृतार्थ करने में कोई विलम्ब न करे .सरकार के पास लगभग 100-150 वर्ष का पूरा इतिहास हैं उनमे से चुनाव करना संभवतः कठिन नहीं होगा .सूची मै दे सकता हूँ पर वो मान्य हो यह कोई जरुरी नहीं हैं .
अभी बहुत समय हैं सरकार के पास कारण वर्तमान सरकारको लगभग 50 वर्षतक शासन करनेलक्ष्य हैं ,उस अवधि तक भारत देश पुरूस्कार /सम्मान प्रधान देश माना जायेगा और जो पुरुस्कृत होंगे वे निश्चित ही सरकार के कृपा पात्र रहेंगे . जो स्वर्गीय हो चुके हैं उनको भी पुनर्जीवित किया जा सकेगा।हम नित नए नामों की सूची का इंतज़ार करेंगे।
*डॉ अरविन्द प्रेमचंद जैन, भोपाल,मो09425006753












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