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गांधी तुम परमवीर (कविता)



 *सुमन 'पुष्पश्री*


'सत्य के वीर' हो गांधी तुम परमवीर,


'अहिंसा के पुजारी' हो तुम कर्मवीर।


जन- जन में तुम 'बापू' कहलाते,


बिन उपाधि छवि 'राष्ट्रपिता' की बन जाते।


 'हरिजन' पुकारा दलित जन को,


मिला सम्मान दुखित जन को।


तुमने नमक कानून तोड़ा,


देशवासियों ने ऐश-आराम छोड़ा।


'सत्य के वीर' हो गांधी तुम परमवीर,


'अहिंसा के पुजारी' हो तुम कर्मवीर।


विनम्रता और सहनशीलता की ज़ुबान हो तुम,


'स्वतंत्रता के पंखों' कि उड़ान हो तुम।


गीता का अंग्रेजी अनुवाद कर गर्व जताया,


स्वदेशी में जान, विदेशी में न रखो प्राण बताया।


चरखा चला स्वदेशी का विकास चक्र चलाया,


'अनशन' के पक्के इरादे ने हुकूमत का सर झुकाया


'सत्य के वीर' हो गांधी तुम परमवीर,


'अहिंसा के पुजारी' हो तुम कर्मवीर।


'सविनय अवज्ञा' से 'भारत छोड़ो' तक पहुंचाया,


देश के लिए जेल जाकर सौभाग्य कमाया।


सिंहासन हिला 'असहयोग' और 'स्वदेशी' से,


छूटी मातृभूमि चंगुल से 'विदेशी' के।


राष्ट्रीय मुद्रा पर यूं तुम्हारी छाप चढ़ी है,


मन में हमारे तुम्हारी यही छवि गड़ी है।


'सत्य के वीर' हो गांधी तुम परमवीर,


'अहिंसा के पुजारी' हो तुम कर्मवीर।


 *सुमन 'पुष्पश्री,दिल्ली



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