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दीपावली भारतीय मनीषा, प्रज्ञा औऱ समृद्धि का एक विलक्षण पर्व(दीप पर्व विशेष)











*राजकुमार जैन राजन*

तीज त्योहारों की ऊष्मा हमारे यहां कभी कम नहीं पड़ती बल्कि और अधिक बढ़ती रहती है। आत्मविश्वास के उजियारे से विवशता के तम को निःशेष करने वाला मंगलकारी  ज्योतिपर्व हमारे सामने समुपस्थित है। इस पर्व पर द्वार से लेकर घर - आंगन,  चौक - चौबारे सभी जगह दीपक जलाकर भरपूर रोशनी की जाती है। दीप पर्व की यह तैयारी मानव सभ्यता की ही नहीं, मानवीयता के विकास की भी गाथा है। चेतना के जागृत होते ही यह भाव प्रकट होता है कि स्वयं को प्रकाशित कर लेना ही काफी नहीं है, अपने समाज और राष्ट्र को भी प्रकाशित करना होगा।

सम्पन्नता, प्रचुरता, धन - धान्य व सौभाग्य का आशीर्वाद देने वाली चंचला, गतिमय महालक्ष्मी  की कोटि - कोटि जन श्रद्धापूर्वक अभ्यर्थना करेंगे। महालक्ष्मी के इस पर्व पर कर्म के संकल्प को लेकर व्यक्ति असीम को प्राप्त करने के उद्यम में जुट जाएं, अपने कर कमलों को इतना सजीव व सक्रिय बनाएं कि उसमें लक्ष्मी के पदचिन्ह अंकित हो उठें। 

कर्म व उद्योग व्यक्ति की नियति है। वह शुभकर्मों का अबलम्बन कर दुष्कर्मों का परित्याग करें। स्वयं  के प्रयासों का फल समाज व राष्ट्र तक विस्तारित करें, सृजनशील बनें , यही इस पर्व का संकेत है। यह आलोकपर्व तिमिरहारी है। अमावस के अंधकार के खिलाफ युगों से चली आ रही प्रकाश क्रांति की चेतना इसकी ओज रश्मियों से व्यक्त होती है।

असरकारी प्रकाश वह है जो हमें अपना रास्ता दिखाए। भीतरी उमंग, उल्लास ही हमारे लिए रोशनी पथ का निर्माण करेंगे। हमारी अग्रगामी सोच ही हमारे रास्ते रोशन करेंगे। भीतरी उजास बाहरी अंधकार को आसानी से हरा सकता हैं

"अप्प दीपो भवः" की बाहरी ज्योतिधारा इतनी गहरी और सनातन है कि कभी चूकती नहीं है। आंतरिक शक्ति का जागरण ही व्यक्ति का मनोबल  बढ़ाता है, तभी तो हम बाह्य शक्तियों के विरुद्ध विजय पा लेते हैं। लालच, अज्ञान, सभी के लिए अन्तहीन अंधकार है। अंधकार पर विजय प्रकाश ही कर पायेगा । प्रकाश के लिए आंतरिकता सदैव अनिवार्य है तभी हमारा जीवन रोशनी से भर पायेगा।

वर्तमान समय राष्ट्र की विषम परीक्षा का चल रहा है। राष्ट्र शक्ति को इस पर्व पर निर्णय लेना है कि वह किसका आह्वान करे, वह किसे आहुति दें। साम्प्रदायिक शक्तियां चाहे जिस पक्ष में हों, स्थान - स्थान पर कुटिल विषधर की भांति राष्ट्र को डरा रही है। उपद्रव करने वाले, निहित स्वार्थ के दुष्चक्र में फंसकर देश की प्रगति को बाधक करते है , अलगाव फैलाते, दिलों की दूरियां बढ़ाते हैं। हमारी एकता,अखण्डता इस्पात से भी सुदृढ़ बनी रहे इसका दायित्व क्या हमसब पर नहीं हैं ? अपने घर मे दीप जलाकर दूसरे को उजाड़ने में कदापि सहिष्णुता नहीं हैं। यह ज्योति 'जिओ और जीने दो' का मंत्र देती है। स्वयं प्रकाशवान रहकर दूसरों को प्रकाशित करने की प्रेरणा देती हैं।

इस समय देश चुनोतियों के भंवर में फंस हुआ है। अवसरवादियों की खींचतान में सामान्यजन की दुर्गति हो रही है, जिसे गाँधी और लोहिया जैसे लोग ऊंचा उठाना चाहते थे। न्यायपालिका में संपन्न व अभिजात वर्ग शीघ्र न्याय पा जाता है। प्रशासन में प्रभावशाली व्यक्ति अपनी पहुंच से सब कुछ हासिल कर लेते है किंतु लोकतंत्र का सार्थक स्वरूप उस व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाता जो दूरदराज देहातों, जंगलों में आज भी उपेक्षित हैं। किसान आंदोलन में राजनीतिक रंग चढ़ जाता है और वनवासियों, आदिवासियों की नियति उत्सवों में नाचने तक सीमित रह जाती है।एक और गगनचुम्मी अट्टालिकाएं हैं, दूसरी और निपट अभाव व गरीबी। सामाजिक विषमता का उन्मूलन कर ज्ञान, विवेक व संम्पन्नता का प्रकाश जन - जन तक ले जाना होगा, तभी सच्ची  दीपावली होगी।

दीपावली का वास्तविक तात्पर्य  यही है कि हम अपने राष्ट्र को सुंदर बनाएं, उसके नैसर्गिक पर्यावरण को संतुलित रखकर उसकी शोभा बढ़ाएं। ज्ञान रूपी किरणों को बिखराकर अज्ञान, मोह और रूढ़ियों के अंधेरे को दूर करें, अपनी अनमोल सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करें। हमारा सौभाग्य है कि वर्तमान में देश को एक ऐसा मजबूत नेतृत्व  मिला है जो राष्ट्र को स्वावलंबी,  सम्पन्न , मजबूत, और सुरक्षित बनाने की मुहिम में लगा हुआ है।  भारत पुनः विश्व गुरू बनने की ओर अग्रसर है ।यह सुखद संकेत हैं।वस्तुतः दीपावली भारतीय मनीषा, प्रज्ञा औऱ समृद्धि का एक विलक्षण पर्व है। निश्चय ही दीपावली का यह त्योहार  युगों - युगों  से जीवन में शुभत्व धारण करने की प्रेरणा देता आया है।  हमारी शक्ति, हमारा सामर्थ्य जब पूरे समाज मे अवतरित होगा तभी सामूहिक जीवन मे हम रोशनी भर पाएंगे और "तमसो मा ज्योतिर्गमय" का उद्घोष  उद्भाषित होकर हमें प्रकाशमान कर पायेगा। 


*राजकुमार जैन राजन,चित्रा प्रकाशन,आकोला(चित्तौड़गढ़) मो: 9828219919, ईमेल : rajkumarjainrajan@gmail.com










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