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बचपन (संस्मरण)












निराला बचपन, अनोखा बचपन। काश फिर लौट आये बचपन। हम सबका बचपन। याद आया फिर जब उमर हो गई पार, पचपन।

सचमुच बहुत प्यारा न्यारा होता है,बचपन। शरारतें, शिकायतें, धक्का-मुक्की,चिढना, चिढ़ाना। सामूहिक परिवार हो तो सोने पर सुहागा।

कोई चचेरे ममेरे भाई बहन नहीं होते बस यही कहा जाता था यह बड़े की बेटी यह बड़ी का बेटा।भाई बहन भी सभी ऐसे ही रहते थे। कितना अच्छा लगता था, गर्मियों में बाहर छत धोकर ठंडा करना और फिर छत पर सभी भाई बहन धमाल करते करते सोना।

 कुछ वर्षों पहले, मतलब हमसे एक पीढ़ी आगे।दादा दादी,ताउ ताई घर के जो भी बुजुर्ग रहते, सिगड़ी पर भुट्टे, मूंगफली, हरे चने(होला)सेकते फिर बारी बारी से सब बच्चों को खिलाते। ऐसे ही एक बार हमारे ताऊजी ताईजी, मूंगफली सेक रहे थे। अचानक उन्हें याद आया मैं यानी माया कहां ? मेरे बड़े भाई बोले बाहर , पड़ोस वाली उसकी सहेलियों के साथ बैठी है।उस समय कालोनी नहीं मोहल्ले में अधिकतर लोग रहते थे,आज भी छोटी जगह में रहते हैं। दरवाजे पर खड़ा रहना, बैठना लड़कियों के लिए शोभा नहीं देता,ऐसा कहा जाता था।

भाई की बात सुनकर मेरी ताईजी बोली आज इसको घर में आने दे ,टांग पर गरम खुरपा(खोंचा)चिपकायेंगे तो बाहर खड़े रहना भूल जायेगी। बहुत छोटी उम्र थी शायद छ साल और भाई आठ साल। उनकी शिकायत जैसे मंजूर हो गई। उन्होंने सोचा सच में माया की टांग तोड़ना है।भाई ने जलती सिगड़ी में कोयले के नीचे खुरपा रख दिया।लोहे का खुरपा तपकर गर्म लाल हो गया था। में उछलती कूदती घर में आकर सिगड़ी के पास बैठी और बैठते ही भाई ने वह गरम खुरपा घुटने के पास चिपका दिया। कोई सोच भी नहीं पाया की यह अभी आकर बैठी और चीखी क्यो।मेरा तो रोना शुरू हुआ जोर जोर से।सबने पूछा तो भाई ही बोले आप लोगो ने बोला था की माया की टांग तोड़ना है मैंने खुरपा गरम करके इसलिए ही चिपकाया।अब बारी उनके मार खाने की थी। ताऊजी बोले ऐसा होता है क्या वह तो डराने के लिए बोला।

पर आज भी वह निशान मेरे पास सुरक्षित हैं हालांकि उमर बढ़ने के साथ उसका आकार छोटा हो गया है।

मेरे भाई और मेरा जन्म इंदौर मेरे ननिहाल में मंदिर में हुआ था,संयोग की बात की कृष्ण मंदिर और जन्माष्टमी का दिन भाई का जन्म और ठीक दो साल बाद मंदिर में ही जन्माष्टमी के दिन मेरा जन्म हुआ।हम दोनों जन्माष्टमी के दिन एक दूसरे को बधाई देते।आज वह साथ नहीं है लेकिन बचपन के शिकवा शिकायत के बाद बड़े होकर इतना मान,प्यार रहा बहुत सौभाग्य की बात है।  मुझसे छोटे भाई बहन  और भी है, और भी बाते हैं। आज भाई की बात करके पुरानी स्मृति मन को ठंडक दे गई।भाई बहन के रिश्तों को नमन करती हूं।संसार के सभी भाई-बहनों के पवित्र प्रेम की अनूठी अनोखी दुनिया को नमन करती हूं।

*माया  मालवेन्द्र बदेका,उज्जैन




 













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