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अब न होए प्रीति (कविता)






*विजय कनौजिया*


किसे बनाऊं मीत मैं
किसे कहूँ मनमीत
मन को कुछ भाए नहीं
अब न होए प्रीति..।।

दिल अब टूटा सा लगे
न अब कोई आस
बदले-बदले लोग अब
ऐसी अब है रीति..।।

साथ स्वार्थ में बदले ऐसे
फीके सब संबंध हुए
उनको कुछ अफ़सोस नहीं है
ऐसी अब है नीति..।।

रिश्तों की बदली परिभाषा
ऐसा अब परिवेश हुआ
सब कुछ अवसर पर निर्भर
मुझको ये अनुभूति...।।

किसे बनाऊं मीत मैं
किसे कहूँ मनमीत
मन को कुछ भाए नहीं
अब न होए प्रीति..।।
अब न होए प्रीति..।।

*विजय कनौजिया,ग्राम व पोस्ट-काही,जनपद- अम्बेडकर नगर (उ0 प्र0) मो-9818884701







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