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आश्रम (कविता)









*दुर्गा सिलगीवाला सोनी*

   रम गया है मन इस आस में, 

 जीवन बीते सत्यार्थ प्रकाश में, 

 ज्ञान की लौ भी प्रज्ज्वलित हो, 

आश्रम शरण ली इसी विश्वास में,

 

विचलित मन था हृदय भी दूषित, 

विचर रहा था तम के अंधकार में, 

मिली कृपा गुरुवर श्री श्री जी की, 

कैसे भुला दूँ उनका ये उपकार में,

 

   तन मन धन सब कुछ नश्वर है, 

  गुरु कृपा में केवल परम सुख है, 

कृतार्थ हुआ गुरु चरण रज पाकर,

  संताप सहे जो गुरुवर विमुख हैं,

 

अविरल बहती है ज्ञान रस की गंगा,

  मिलता है सर्वांग योगों का प्रसाद, 

  मन और हृदय हुवे आनंद विभोर, 

आश्रम ने घटाए जन्मों के अवसाद   

 

*दुर्गा सिलगीवाला सोनी भुआ बिछिया,जिला मंडला, मो. 8817678999,  ds610567@gmail.com










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