-सोनल पंजवानी, इंदौर
तेरे मेरे दरमियाँ कुछ बसन्ती होने लगा है
देखो ये मौसम कुछ तो हम सा होने लगा है।
इसने दे दी है फूल को इजाज़त
ये भी अब बेशुमार खिलने लगा है।
कोई वादा न कर ऐ जाने वफ़ा
कोई मन्नत की डोरी पिरोने लगा है।
कोई उम्मीद बर न आये तो क्या
किश्तियों को कनारा डुबोने लगा है
कोई पाक़ दामन है मेरी महफ़िल में
दिल ये उम्मीद फिरसे देने लगा है।
-सोनल पंजवानी, इंदौर
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