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स्त्री(कविता)


*कमलेश नाहर*


तू इस ब्रह्मांड की शान,
इस भारत भूमि का स्वाभिमान,
अपनी शक्तियों को लो पहचान,
रच डालो नए प्रतिमान,
बनो नही तुम दया की पात्र
तुममें भरी है क्षमता अपार,
खोलो अपने हौंसलो के पर 
कर रहा उन्मुक्त गगन इंतजार।
क्यूँ मानें तू  खुद को अबला,
तेरे ही नाद से गूंजते काशी,कर्बला।
मत कर दरिंदो के आगे समर्पण,
अपने दम से कुचल डाल उनका फन।
जगा भीतर का साहस बन जा निडर,
निर्भीक होकर भगा दूर हर डर।
अज्ञान के तिमिर को हर जला ज्ञान का दीप,
आत्मविश्वास को रख हरदम समीप।
तू कम नही किसी से यह जान ले,
हिमालय भी बौना तेरे लक्ष्य के आगे गर तू ठान ले।
खोल पिंजरों को भर उड़ान
पंखों के बूते बदल ये जहान।


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