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शहादत की आग(कविता)



*श्वेतांक कुमार सिंह*

 


शहादत की आग से

चट्टानें पिघल जाती हैं

देश आजाद होता है

सारी बेड़ियाँ टूट जाती हैं।

 

जिनकी आवाज दफन

हो जाती है दीवारों में

शहादत, उन बेजुबानों में

उज्र के बोल उठा जाती है।

 

निकलकर जुर्म के पिंजरे से

गगन में उड़ सको निर्बाध

शहादत, घायल पंछियों में भी

शेर सा जिगरा जगा जाती है।

 

शहीदे आजम ने देखा होगा

दासता से मुक्ति का सपना

वो जानते थे, शहादत

मुर्दों में भी जान फूंक जाती है

 

तुम्हारा भी ये फर्ज है

व्यर्थ न जाए उनका बलिदान

जाति-धर्म के भेदभाव से

बच जाए यह राष्ट्र महान।

 

भूलना मत कभी शहीदों को

उनके संघर्षो को, सत्कर्मों को

उनकी सोंच को, नए सपनों को

उनकी नयनिमा राष्ट्र को

समृद्ध और महान बना जाती है।

 

*श्वेतांक कुमार सिंह,(प्रदेश संयोजक एन वी एन यू फाउंडेशन),बलिया, उ. प्र.,मो- 8318983664

 


 


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