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पांडेय जी और उनकी दुनिया(व्यंग्य)








-लालित्य ललित

ई पांडेय जी है न वही देविका गजोधऱ के आशिक़!का समझते है! का नहीं,ये हम नहीं जानत है,पर कहे देते है कि हमारा नाम कल्लू है वही कल्लू जो एक समय तक सुनयना के डबल डोर आशिक थे,पर अब वह घास नहीं डालती।सुना है उसको कोई और गधा पसन्द आ गया अब।

चिलमन से जब ये बात कल्लू तीन पैग पी कर अपना दुख साँझा कर रहा था।तभी चिलमन ने कहा कि आप जैसा चोट खाया इंसान पहली बार फुरसत में देखा है।

पांडेय जी को जब चिलमन ने बताया कि कल्लू तो बड़ा चोट खाया इंसान है तो पांडेय जी ने कहा कि ये मायावी दुनिया है।यहाँ कोई हारता है तो कोई जीतता है।जैसे पांडेय जी की दुनिया के बारे में किसी एफएम ने इंटरव्यू किया तो विलायती राम पांडेय जी ने भी मन की बात को एंकर से साँझा किया।

जब उसने पूछा तो पांडेय जी आप किस लेखक से प्रभावित है तो पांडेय जी ने एक बुजुर्ग लेखक की ग़ज़ल का जिक्र करते हुए कहा तो यह उनकी आत्मीय खुशी थीं।वाकई में वह ग़ज़ल पाण्डेय जी को पसंद है।

जहां आप पहुंचे

छलांगे लगा कर

वहां मैं भी पहुंचा

मगर धीरे-धीरे

पंक्तियां देश का गौरव यानी साहित्य अकादेमी सम्मान से सम्मानित डॉ रामदरश मिश्र की।

जब राधेलाल जी ने सुना तो बेचारे ने सोचा कि पांडेय जी सारी उम्र गुरुदेव,गुरुदेव कहते रहे और जब जिक्र करने की बारी आई तो किसी और का नाम ले दिया!

ये क्या बात हुई!

जबकि पांडेय जी को पता है कि किस लेखक का नाम कब और किस दशा में लिया जाना है!

ये बात समझनी चाहिए।पर जी क्या करें।महत्वाकांक्षी दुनिया है।उसमें विचर रहे अतिसक्रिय लोगों का कुछ नहीं किया जा सकता।

बहरहाल पांडेय जी जब ज्यादा रचनात्मक होते है तो सोचते है कुछ अलग किसिम का।

आज भी सोच लिया-

खुशी अपना नाम बतलाना

सच कहना

नो झूठ

ओनली अब्बा

खुशी पहचाना मुझे

मैं तुम्हारा अपना ही आनंद

पहचान लो

मैं तुम्हारे भीतर हूँ

ओनली वाला सच्चा फ्रेंड

मजा तभी है जब मिलो तो

मिलो

नहीं मिलो तो न मिलो

लेकिन आनंद का अपना ही सुख है

इस बात को पहचानना जरूरी है

सोचो

दिल से

दिमाग से भी

यही सुख है और परिमार्जित आनंद भी

जिसे मैंने पहचान लिया

अब तुम भी पहचान जाओ

कायदे से

समय से और निर्धारित अवधि को भी

खुशी कहता हूँ तुम्हें

इसको जीने का अपना मजा है

जो भी पाया है अभी तक

प्रकृति से प्रदत्त है

स्वर्णिम उपहार है अभी तक का

शुभकामनाएं

खुशी मेरी तरफ से भी

अनुपम स्नेह।

पांडेय जी को असन्तुष्ट कुमार ने कहा कि आप की बॉस से पटती है,मेरे बारे में तो कोई सोचता भी नहीं।देखो न एक महीने से ऊपर हो गया।अभी तक पास पोर्ट का एन ओ सी नहीं मिला।ये भी कोई मजाक है क्या!

एक आप है पांडेय जी।आप का काम सीट पर बैठे बिठाए हो जाता है।

पांडेय जी ने देखा कि असन्तुष्ट कुमार बोले चले जा रहे है जैसे शताब्दी एक्सप्रेस की ब्रेक फेल हो गई हो।

पांडेय जी ने शशि को कहा कि साहब के लिये ठंडा ले आओ।

शशि ने देखा कि मामला बड़ा पेचीदा है,वह दौड़ कर ले आया।

पांडेय जी ने कहा कि आप के साथ ही ऐसा क्यों होता है!

जरूर शनि का कोई प्रकोप है।कुछ समाधान करना पड़ेगा।

किसी पंडित की सलाह लें।

असन्तुष्ट कुमार ने कहा कि सब खाने की बात करते है।पंडित जी क्या कर लेंगे!

हजार पाँचसौ का खर्चा बता देंगे।बस, हो गया काम।आप तो रहने दीजिए पांडेय जी।पक गया हूँ अब तक।कुछ नहीं होने वाला।सब मिले हुए है।

पांडेय जी ने कहा।हम्म!

कुछ करते है।देर है अंधेर नहीं।

दुनिया के लोचे अलग तरह के है।कोई समझ लेता है तो कोई इग्नोर कर देता है।

किसी काम से पांडेय जी को बिजली विभाग ने उन्हें एक बैठक के लिए उज्जैन भेजा गया।

उनके साथ उनके विभाग के और अधिकारी भी थे।जल्द रिटायर होने वाले है।

कहने लगे देखिए पांडेय जी क्या जमाना आ गया है।मेरे से जूनियर को सर पर बिठा दिया गया।मैं क्या करूं!

पांडेय जी ने कहा कि एक जमाने में भल्ला के जमाने में पवन सतीजा ने रिजाइन कर दिया था।आप भी ऐसा कर दिखाओ।वैसे भी आपकी सर्विस बहुत हो गई।औऱ क्या कर लेंगे!

लेकिन पांडेय जी की बात पिंटू सिंह टमटा सुनता रहा,लेकिन कोई उत्साह उसमें दिखाई नहीं दिया।अंदर की बात असन्तुष्ट कुमार ने कहा कि सब कहते जरूर है लेकिन उत्साह दिखाने में सब झंडू बाम है भाई साहब।

पांडेय जी को दयाल बाबू ने भी कहा था कि ऐसे कोई करता है क्या!

अब देखिए!पड़ोसी देश धमकी दे रहा है कि ये कर दूंगा,वोह कर दूंगा।

जबकि दोनों में से कोई करने वाला कुछ भी नहीं।दूसरा देश अपने वाला है।

दयाल बाबू ने कहा कि पांडेय जी हमारे यहां हांकने की लंबी परंपरा है जिसका निर्वाह हम सदियों से करते आये है।

इसका मतलब है कुछ दिन अर्थव्यवस्था डांवाडोल होगी,फिर कुछ समय बाद गाड़ी पटरी पर दौड़ने लग जायेगी।

अच्छा! ये बात है।तभी लल्लू भैया ने कहा कि जो हो रहा है,वह सब ठीक नहीं है।

एक बात है समस्या हमारी है तो अमेरिका काहे मध्यस्था कर रहा है!

पांडेय जी ने कहा कि जो शक्तिशाली होता है उसकी कक्षा में हर स्टूडेंट हाजिरी लगाता है बे।क्या समझे!

दयाल बाबू भी समझ रहा था औऱ असन्तुष्ट कुमार भी।

असन्तुष्ट कुमार ने कहा कि मेरा पासपोर्ट बनना है, पर अभी तक दफ़्तर ने नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट ही नहीं दिया।जब तक वह नहीं मिलेगा तब तक पासपोर्ट ही नहीं बनेगा।यदि वह नहीं बना तो मैं विदेश कइसे जाऊंगा!

पांडेय जी ने कहा कि दयाल बाबू भी दो बार सरकारी विदेश यात्राओं में गए थे।क्या उखाड़ लिया!

जो आप उखाड़ पाओगे!

इसलिए छोड़ो।बाहर जाने का सपना देखने।स्वदेश में रहो।खुश रहो।यही काफी है।पर असन्तुष्ट कुमार इनसब से बेखबर है।उसने रट लगा रखी है कि बाहर जा कर ही मानूँगा।

बेचारा असन्तुष्ट और उसकी लीला।कोई समझे न!

क्या होगा! क्या नहीं!

अबे! शशि।एक चाय तो पिला।कड़क हो, आई बात समझे।

पांडेय जी ने अपनी स्टेनो को कहा कि जिंदगी की दौड़ में यदि आप को आगे बढ़ना है तो उसके लिए कोशिश भी करनी पड़ेगी।सोचना होगा।देखना होगा।बस अगले पायदान पर चढ़ने के लिए आप तैयार है।

पांडेय जी की स्टेनो भी पांडेय जी की प्लानिंग से चकित तो रहती थीं।आजकल विस्मित भी होने लगी है।।मजेदार बात तो यह कि वे आजकल वाट्सप पर अगली योजनाओं को अमली जामा पहनाने लगे है।पांडेय जी का कहना है कि जो काम करना है वह कर दो।नहीं तो वक्त ऐसा है कि उसको कोई पकड़ नहीं सकता।कब वह फुर्र से दौड़ जाएगा।आप कितना दौड़ते रहो, कुछ हासिल होने वाला नहीं।

आज पांडेय जी ने देखा कि मंदिरों से भगवान लापता है,उसकी जगह पुजारियों ने अपनी दुकानें सम्भाल रखी हैं।

भगवान लापता है

आज एक मंदिर गया

अलसुबह

लाइन में लगा

दर्शनों के लिए लम्बी मशक्कत

ऊपर से पंडितों की चिल्ला-पों

फिर हर दुकान में व्यापार

अब वह यादगार के तौर पर सिक्के हो

लड्डू हो

पंडित जी का ठसका ऐसा

जैसे वे किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के कैंटीन के मैनेजर हो

भगत बेचारा है

आस्थाओं के इस देश में

उसे लगता है कि भगवान जी सीधे सुनते है

नछत्तर सिंह ने कहा कि आजकल टेलीविजन पर

भगवान जी सीधे लाइव दर्शन देते है

वह भी अच्छे से

इस सब में पिस रहा बेचारा भगत है

इस व्यापार में कितने लोग है!

प्रसाद वाला

बुजुर्ग स्त्री जिसके हाथ में थाली है

तिलक की

रामू चाय वाला का अड्डा

रामदीन पूड़ियाँ वाला

रिक्शावाले से लेकर होटल व्यवसायी

सबके सब

इस घेरे में शामिल है

लगता है अब भगवान भी हम ने

अपनी सुविधाओं के चलते अर्जित कर लिए

अन्यथा भगवान को क्या पता कि उसके दर्शन के लिए

भगतों से नकद नारायण लिये जा रहे हैं!

बहरहाल व्यवस्था का हिस्सा बनिए

इस आत्मिक सुख का आनंद लें

मंदिर में प्रभु से सेल्फी सुख उठाएं

तिलक लगाइए

रामदीन पर आलू पूड़ियाँ खाएं और

रामू की चाय का आनंद लेते हुए

अपने ठइये पर लौट आइये

यही नियति है

यही सच है।

जिसे बदलने में अभी समय लगेगा

पर बदलेगा अवश्य।

तभी पांडेय जी को एक ऐसे किरदार से टकरा गए।जिनका रिटायरमेन्ट में बमुश्किल से 7 महीने बचे होंगे।कहते है कि मेरा जूनियर मेरे सर पर बैठ गया।ये अच्छी बात नहीं है।गलत निर्णय हुआ है।पांडेय जी ने कहा कि यदि आपको लगता है कि गलत हुआ है तो आप को वीआरएस ले ही लेना चाहिए।

वह सज्जन है फट्टू सिंह टुच्चा।टुच्चा जी पकाते इतना है कि चावल कुकर में जाने से पहले ही कह देता है कि मैं पक गया रे!

टुच्चे जी की शक्ल देखते ही लोग कतराने लगते है जैसे बाजार में बैटरी कार लांच आने आई हो और लोगों ने उसे लेने से मना ही नहीं किया।देखना भी दरकिनार कर दिया।

टुच्चे जी के कैरेक्टर को सब जानने व समझने लगे थे।

आजकल तो हर फील्ड में टुच्चे जी नजर आने लगे है।पांडेय जी को हंसी भी आती है।कई बार तो टुच्चे जी को पांडेय जी ने कह भी दिया कि आप उतना ही बोला करें,जितनी आवश्यकता हो।लेकिन टुच्चे जी भी इतने कमाल के है कि उनको जितना भी डांट दो,कुछ देर में वे सब भूल कर खाने की टेबल पर आपके साथ संगत बिठाने को तैयार दिखेंगे।

टुच्चे जी समाज के वह प्राणों से भी प्यारे जीव है जो खुल कर किसी की भी आलोचना कर सकते है।उनका कहना है कि मेरा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता।

दरअसल बीमारियां भी ताज़ा घर देखती है कि इस पर प्रहार कैसे किया जाए!

जैसे कल्लू के बवासीर हो गई।सुनयना उसे पूछती नहीं।तिवारी ब्रदर्स ने पासा पलट लिया।राधेलाल जी सब पर पैनी निगाहेँ बनाये हुए है।बेशक उम्रदराज है लेकिन उनका राडार खास किसिम का है।रामकिशन पुनिया के कहने पर उन्होंने एक तरफ का जबड़ा लगवा लिया है।अब लपकुराम ने कहना शुरू कर दिया है कि पापे इस उम्र में अखरोट तोड़ने का इरादा है क्या!

उधर राधेलाल जी क्या कहते।मुस्करा कर कहा कि हम मौके पर चौका मारने का हुनर जानते है ओ नकोदर पुरुष।

यहाँ जिंदगी है और जिंदादिली का शास्त्र भी।

कल्लू आजकल खामोश है।क्या बोले!

बवासीर न बैठने देती है और न सोने।झंडू सिंह गुलियाँ ने उनको कहा है कि आजमगढ़ के पास एक हकीम जी रहते है सुलेमानी।वह ऐसा इलाज करते है कि बीमारी जड़ से गायब।

राधेलाल जी को जब से पता लगा है उन्होंने फोन लगा कर दिलासा दी और  कहा कि आप चिंता न करें।ठीक हो जाएंगे।अब शरीर है,जैसे गाड़ी का इंजन कब दगा दे जाए।बहरहाल अपना ध्यान रखो।आल इज वेल।

कल्लू क्या कहता।इतना भर कहा कि शुक्रिया,भाई साहब।आप ने याद किया।वरना मुसीबत के दिनों में सब सम्बन्ध छुड़ा लेते है।

ये तो आजकल की कहानी है।कुछ तेरी तो कुछ मेरी।

आजकल विलायती राम पांडेय दफ्तरी काम से 10 दिनों के लिए उज्जैन में है।यहाँ बिजली विभाग की कोई राष्ट्रीय स्तर की बैठक है।

इसी बहाने पांडेय जी ने भी प्लान कर लिया है कि इस दौरान पूरे शहर की आबो-हवा का मिजाज पता कर के ही मानेंगे।

तभी देविका गजोधऱ ने लव टाइप का स्माईली भेज दिया।

पांडेय जी के लिए ये अतिरिक्त किसिम का ज्ञान वैसे ही है जैसे मशरूम सूप में नमक कम हो।वैसे ही अतिरिक्त ज्ञान आप को थपथपाता रहता है कि प्यारे दुनिया इतनी भी बुरी नहीं,जितना तुम समझ रहे हो।देविका ने कहा कि पांडेय जी काश मैं भी आपके इस टूर में साथ होती तो क्या होता!

पांडेय जी भी हाजिर जवाब थे।झट कह दिया कि क्या होता!

अरे तुम्हारे साथ होने से हम हमेशा चार्ज रहते।

सुनते ही देविका ने कहा कि आप की यही अदा तो हमें आप के और नजदीक ले आती है जैसे पेस्ट पर लगा ब्रश!

पांडेय जी ने कहा कि इतना भी सेंटी न करो कि उज्जैन के बिजली विभाग का साकिट फ्यूज हो जाये।

पगलेट किसिम की हो देविका गजोधऱ तुम।

जब मौसम होगा तभी न ले चलेंगे,बात करती हो।अच्छा! रामखेलावन की क्या रपट!

पांडेय जी वे पिछले एक हफ्ते से मधुबाला की बहन शेफाली देशमुख के साथ पटना वाली ट्रेन के स्लीपर कोच में बैठे देखे गए।वैसे मैंने आपके निर्देशानुसार चिलमन को पीछे लगा दिया है।

हम्म!

हमारे पीछे भी किसी को लगाया क्या!

क्या पांडेय जी!

हम है न!

किसी और को काहे लगने देंगे।

हेलो....

नेटवर्क फिर से गड़बड़ा गया।अजब नालायक और नल्ले किसिम के है ये सर्विस प्रोवाइडर।जब काम की बात होने को होती है तो नालायक नेट बिगड़ जाता है।

बहरहाल पांडेय जी आसमान में देख रहे है कि अब नेट आएगा,तब आएगा।बेचारी देविका गजोधऱ बेचैन होंगी।

 

-डॉ लालित्य ललित

संपादक हिंदी

नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया

नेहरू भवन

5,इंस्टियूशनल एरिया,फेज-2,

वसन्त कुंज,नई दिल्ली-110070







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