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ओ मेरे पिताः काव्य संग्रह अनुभूतियों का समुद्र है(समीक्षा) 






*संजय जोशी 'सजग'*

" ओ  मेरे पिता   "  काव्य संग्रह  के  रचनाकार - लेखक ,कवि , अनुवादक एवं प्रसिद्ध  शिक्षक  श्री  कारूलाल जमड़ा  है  l यह इनका  तृतीय काव्य संग्रह एवं चतुर्थ पुस्तक है l अनेक पत्र -पत्रिकाओं में  इनकी रचनाओं का प्रकाशन लगातार होता रहता है l  इनकी रचनाओं में प्रयुक्त शब्द और भाव गहनता एवं सरलता लिए होते हैl इनने  "पिता  " जैसे  कठिन विषय को सहज  और सरल शब्दों  में अभिव्यक्ति दी है  l इनकी कविता में अंग्रेजी और उर्दू शब्दों  का  प्रयोग बड़ी सतर्कता  से  किया गया  है l मालवी  बोली के शब्दों से कविता संग्रह में  मीठेपन  का अहसास होता है l इनके माँ  के संघर्ष  पर लिखे  काव्य संग्रह को बेहद पसंद किया गया और कई पुरस्कार भी  मिले l माँ  पर तो सभी कलम चलाते है पर पिता पर लिखना उतना ही कठिन होता है  रचनाकार ने इस विषय पर सहज ,सरल और अपने इर्द गिर्द घटती घटनाओं  , संवेदनाओं  और  अपने  मन  के अंतर्दवंद ,  करुणा और प्रेम को  शब्दों में ढालकर काव्य  को मूर्त रूप दिया है l इनकी रचनाओं में  ठेठपन  के साथ  -साथ  हर  स्तर  के भावो को शब्दों से ऐसा सजाया है कि  काव्य संग्रह की हर रचना पढ़ने को  बेचैन  करती है l शीर्षक चयन  बड़ी  महीनता के साथ किया है l इस संग्रह में गांव , समाज  ,परिवार रिश्ते- नाते  के तानेबाने और आपाधापी को  शब्द सागर से सिंचित किया है l "  ओ  मेरे पिता " काव्य  संग्रह अनुभूतियों का समुद्र  है 
          पुस्तक के शीर्षक  को साकार करती रचनायें काव्य रस के विभिन्न भावों  को समेटे है l इसमें ६७  कवितायें है जिसमे करुणा  और सामजिक जीवन में महिला पुरुष के  मनोभावों  का  सटीक  चित्रण है l सभी  कवितायें दिल  को छूती है एवं रचनायें अपने आप में सम्पूर्णता लिए है  l इसमें कुछ रचनाये जो अभिव्यक्ति के  नए आयाम को छूती है जिनमें   -  माय पापा " पर्सन इन यूथ  ,"ओ  मेरे पिता  " "चरण स्पर्श  " , 'बुढ़ापा सबको आयेगा  " , "शमसान  से गुजरते हुए   " "  माँ  का समभाव ","  बंबई से आया मेरा दोस्त  ", "कपड़े  की फेरी वाला  "  ' बेटी जैसी बहू  "  "बफेट डिनर "  " चिर निंद्रा ""  कामयाबी की कीमत "आदि प्रमुख है l 

 " ओ  मेरे पिता  "-शीर्षक कविता से - मार्मिक अभिव्यक्ति 

नहीं मैं नहीं  देख सकता 

कापंते पैरो से आगे बढ़ते हुए 

हर कदम पर तुम्हारा  यूँ  लड़खड़ाना 

और  दीवार पकड़  कर  चलना 

          -x -

"माय पापा " पर्सन इन यूथ" शीर्षक कविता से - 

बचपन की छवि  तो यह  कहती , 

बिलकुल  गोल  गप्पे थे 

जवानी में मेरे पापा के ठप्पे  थे l 

जिसमें  रचनाकार  ने मखमली चोट सी अभिव्यक्ति कर  पिता  प्रेम का मतलब समझाया है l 

 "पिता  एकाकी  होते हैं  "  रचनाकार ने पिता की   महत्ता को सुंदर ढंग से प्रतिपादित किया है --

 लिख चुका  हूँ 

"पांच कवितायें "   पिता पर 

भीतर की कोमलता  को उड़ेलना खूब चाहा ,

पर सच  कहूँ , पिता पर कविता  संभव  नहीं l 

"बेटी जैसी बहू "   शीर्षक  से परम्परा पर कटाक्ष करते हुए लिखा -

देहरी पर कदम रखते ही 

तुम जकड़  लेते हो उसे 

अपने रीती -रिवाजो  में ,

परम्परा के नाम  काट देते हो 

उन्मुक्त उड़ान वाले पंख l 

 प्राण प्रिये  शीर्षक से --एक सुंदर संदेश 

 सरल  रहना, सजग रहना 

साथ देना ,यही अनुरोध है 

तुम्हारे बेजोड़  जीवनवृत  पर 

 यही टिका ,यही भाव बोध है 

 

    सभी रचनायें  सकारात्मक संदेश देती है l  अपनी भावना को अभिव्यक्त करने में  l  नये  प्रतिमान और बिम्ब का प्रयोग ,साथ  ही प्रश्न भी  उत्तर  है l इसे एक सार्थक काव्य संग्रह की श्रेणी में रखा जा सकता है l 

       रचनाऍ पठनीय तो है ही सराहनीय व प्रेरणादायी भी  है , काव्य संग्रह अपने आप में पूर्णता लिए हुए है संग्रह के मूल्‍यांकन का अधिकार तो पाठकों को है l 

                                           

कृति -ओ  मेरे पिता  

विधा -कविता

रचनाकार -कारूलाल  जमड़ा 

प्रकाशक - सन्मति पब्लिशर्स 

मूल्य - 150 रूपये 


 




 

 


 



 


 

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