*राजेश चौहान 'राज़'*
नेह भरे सन्देश तुम्हारे
सजनी जब जब मिलते है
निरख निरख फूलो से अक्षर
मन मे कँवल से खिलते है
आज मिला सन्देश अनोखा
जिसमे लिखा न कुछ भी है
झलक रही है प्रीत तुम्हारी
किन्तु दिखा न कुछ भी है
बिन बोली भाषा मे आँसू
कितना कुछ कह देते है
तपती धरती सा व्याकुल मन
आज तुम्हारा लगता है
बुझा - बुझा हैं ऊपर - ऊपर
भीतर ताप सुलगता है
दहक उठे हैं फूल पलाशी
अगणीत सूरज तपते है
बिछडे़ंं हैं तो मिल जायेगे
पल दो पल की दूरी है
रात सुहागिन होगी अपनी
शाम अभी सिन्दूरी है
झिल-मिल तारे देंगे गवाही
चाँदनी चंदा जगते है
*राजेश चौहान "राज़ ",41 अरविन्द नगर,कोयला फाटक उज्जैन ( म. प्र .) मो. 09907472342
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