*विजय कनौजिया* जियूं कैसे तुम्हारे बिन करूँ मैं क्या तुम्हारे बिन लगे फीके नजारे सब न लागे दिल तुम्हारे बिन..।। मेरी उलझन ये सुलझा दो मैं उलझा याद में तेरी है खोया रात-दिन तुझमें ये पागल दिल तुम्हारे बिन..।। न जाने क्यूं सताती हैं मुझे बेचैनियां इतनी है अधरों पर भी खामोशी न मुस्काए तुम्हारे बिन..।। नमी आंखों में ऐसी है है पलकों में भी भारीपन इसे समझाऊं कितना पर रुलाता है तुम्हारे बिन..।। मेरी बस आरजू इतनी तुम्हारा साथ मिल जाए मेरा जीवन तुम्हें अर्पण नहीं जीना तुम्हारे बिन..।। नहीं जीना तुम्हारे बिन..।। *विजय कनौजिया,45 जोरबाग,नई दिल्ली शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है- अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com
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