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नाखुश आज प्रकृति कंपित(गजल)


*जयसिंह आशावत


तुम बिन वक्त कहाँ गुजरा है
तू तो आंखोँ मेँ ठहरा है


कहते जिनको स्वप्न सुनहले
उन पर तो लगता पहरा है


कहना होगा और जोर से
शासन तो गूंगा बहरा है


सुन ले भाई रुक कर सुन ले
आगे बहुत बड़ा दर्रा है


नाखुश आज प्रकृति कंपित
धरती का जर्रा जर्रा है


आजा तेरा साथ चाहिए
स्वागत में कतरा कतरा है


भूल प्रीत बचपन की कान्हा
गोकुल तज मथुरा ठहरा है


कितने भी सागर गहरे हों
माँ का मन सबसे गहरा है


सुख दुख दोनोँ में पानी का
आंखोँ से रिश्ता गहरा है


*जयसिंह आशावत,नैनवाँ जिला बून्दी,मो  9414963266


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