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न तुम जानो न मै जानू(कविता)


ऐ जाने अजनबी
तुम्हारा यूँ जिंदगी में आना



ऐसा लगता मानो मन वीणा का झंकृत हो जाना
सप्त सुरों में खो कर अपने को पाना



दो अतृप्त मनो का यूँ मिल जाना
ऐसा लगता मानो जन्मों की प्यास का बुझ जाना



मन का महकना ,महककर खिल उठना
निराशा के घोर तम में दिया आशाओं का टिमटिमाना



तुम्हारे साथ की मधुर कल्पना
उन कल्पनाओं में खो जाना



दिल का हर वक्त गुनगुनाना
इंद्रधनुषी गुलाबों की बगिया में टहलना



हसीन ख्वाबो में यूँ विचरना
मिलन की आस में यूँ तरसना



हर पल तुम्हारा यूँ इंतजार करना
अच्छा क्यूँ लगता यूँ लरजना



न तुम जानो न मै जानू


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