म.प्र. साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा नारदमुनि पुरस्कार से अलंकृत

महाप्रयाण (कविता)


*सोनल पंजवानी*


नीड़ का पंछी जब नीड़ छोड़ 
उड़ने को तत्पर हुआ
मानस पटल पर कितनी यादें खिल उठीं
उसके आने की,चहचहाने की,
गीत गाने की, उड़ान भरने की,
सब कुछ सजीव हो चला।
समय जड़वत हो कर 
उस पटल को देखता रहा कुछ क्षण
फिर ठिठक कर कूच करने को
तत्पर हुआ
उसे याद आया वह रुकना नहीं जानता
उसे तो चलते जाना है।
और बढ़ चला वह महाप्रयाण की ओर।
                                  
*सोनल पंजवानी,इंदौर


 


शब्द प्रवाह में प्रकाशित आलेख/रचना/समाचार पर आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया का स्वागत है-


अपने विचार भेजने के लिए मेल करे- shabdpravah.ujjain@gmail.com



एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ