म.प्र. साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा नारदमुनि पुरस्कार से अलंकृत

लकड़ी बेचने वाली लड़की (कविता)


  -संजय सिंह बैस


जंगल से सूखी लकड़ियां बटोर


 लड़की गांव की तरफ़ निकल जाती रोज़ रोज़


 मधुर आवाज़ लगाती 


ले लो बीस रुपया गट्ठर


 


कुछ मजनू टाइप लड़के मसखरी करते


और पूछ लेते कितने में दोगी


वह बड़ी मासूमियत से जवाब देती


बाबूजी बीस रुपया का लेलो गट्ठर


 


लड़कों के मना करने के बाद आगे बढ़ जाती


 तभी करीब अधेड़ उम्र के बुजुर्ग मिल जाते


ये लड़को से एक कदम बढ़के मजनू थे


इनकी खासियतअकेली लड़की मिल जाए तो


बात करने के लिए लार टपकाने लगते


लकड़ी बेचने वाली लड़की से पूछते


कितने रुपया गट्ठर


लड़की का वहीं जवाब 


बाबूजी बीस रुपया


 


मजनू बुजुर्ग गट्ठर खरीद लेते


और पूछ लेते बिटिया तोहार उमर  सोलह -सत्रह होई


लड़की बताई हमरा माई बताती है


सावन में गिरधर काका के छोटू जन्मल रहल


ओकरे एक महीना बाद


जब  पुलिस हरिया के गिरफ्तार करेस 


ओहीं समय क  जनम है तोहार


 


बुजुर्ग बातों- बातों में उलझाए रहा


पीठ पर से कब लड़की के अंदरूनी अंगों पर हाथ लगाया


लड़की को पता तब चला जब दर्द का आभास हुआ


वह वहां से उठी, उसको धक्का दिया


और सरपट दौड़ पड़ी ।


 -संजय सिंह बैस


 पता – ग्राम - मझिगवां


पोस्ट - लमसरई


 जिला - सिंगरौली


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