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कमी युवा कौशल में नहीं रोजगार उपलब्ध कराने की इच्छा शक्ति में है(लेख)


-डाॅ देवेन्द्र जोशी


श्रम राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष  गंगवार ने उत्तर भारत के युवाओं में कौशल की कमी बता कर भले ही एक नई राजनैतिक बहस छेड दी हो लेकिन आंकडे कुछ और ही हकीकत बयान कर रहे हैं। यह कोई पहला मौका नहीं है जबकि युवाओं को नौकरी न दे पाने की तोहमत युवाओं की योग्यता पर लगाई गई हो। बीते कुछ वर्षों से लगातार यह प्रचारित किया जाता रहा है कि उच्च शिक्षा में रिक्तियों की पूर्ति न हो पाने की एक बड़ी वजह देश मे शिक्षक बनने लायक पात्र युवाओं की अनुपलब्धता है। लेकिन यह तर्क इसलिए सटीक नहीं बैठता कि अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वे की  रिपोर्ट के मुताबिक प्रति वर्ष 25 हजार युवा पी एच डी उपाधि प्राप्त कर रहे हैं। इसके अलावा यूजीसी आईसीए और आई सी एस द्वारा आयोजित नेट परीक्षा में औसत 50 हजार युवा जे आर एफ या नेट परीक्षा पास करते हैं।


 राज्यों की सेट परीक्षा में 25-30 हजार युवा सफल होते हैं। कुल मिलाकर उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए हर साल करीब 1 लाख दावेदार शिक्षक उपलब्ध होते हैं। बीते 10 सालों में करीब 10 लाख उपलब्ध आवेदकों की तुलना में कुल प्राध्यापकों की रिक्तियां सिर्फ 5 लाख ही है। यदि सभी रिक्त पद भर दिए जाएँ  तब भी 5 लाख योग्य आवेदक अतिशेष रह जाएंगे। स्पष्ट है कि कमी युवाओं में कौशल की कमी की नहीं उन्हें नियुक्त करने की इच्छा शक्ति की है। 


यदि केन्द्र और राज्य सरकार मिलकर एक यथेष्ठ कार्य योजना के तहत देश के सभी उपलब्ध योग्य आवेदकों का पंजीयन  करे तो यह बात खुद ही स्पष्ट हो जाएगी कि देश में काबिल युवाओं की कोई कमी नहीं है। इन युवाओं को दरकिनार कर बुजुर्ग रिटायर्ड प्राध्यापकों से काम चलाना न तो समस्या का स्थायी समाधान है और न ही इससे अपेक्षित परिणामों की उम्मीद की जा सकती है।अगर हम वाकई भारत को फिर से विश्व गुरू के पद पर प्रतिष्ठित करना चाहता हैं तो उच्च शिक्षा में बढ रहे नामांकन के अनुपात में शिक्षकों की रिक्तियों की पूर्ति की जाए और काबिल,ऊर्जावान युवाओं को देश का भविष्य संवारने हेतु इन पदों पर नियुक्त किया जाए। 


देश में बेरोजगारी इस समय 45 वर्षों के चरमोत्कर्ष पर है।इसकी तुलना में देश के विभिन्न विभागों में खाली पडे पदों की पडताल के लिए एक विभाग का ही उदाहरण लिया जाए तो सारे देश की स्थिति का अंदाजा लग जाएगा।अकेली उच्च शिक्षा की बात करें तो  2017-18 के ऑल इण्डिया सर्वे ऑन हायर एजूकेशनश की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में देश की उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षकों की कुल संख्या 2,34 लाख कम हो गई।देशभर में 40 केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैं।इनमें प्राध्यापकों के 2476 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 1301 खाली पड़े हैं। यानी करीब 54 प्रतिशत प्राध्यापकों की कमी है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में 59 तथा जेएनयू में 50 फीसदी शिक्षकों के पद रिक्त हैं। यहां 199 प्राध्यापकों का काम 100 शिक्षकों से चलाया जा रहा है।अलीगढ़  मुस्लिम यूनिवर्सिटी में 200 के विरुद्ध 137, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में 253 के विरुद्ध 171 प्राध्यापकों से ही काम चलाया जा रहा है। 


मार्च 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक 23 आई आई टी में 2806 पद खाली पड़े हैं। सबसे ज्यादा 552 पद आई आई टी खडगपुर में खाली हैं। देश के आई आई  टी में शिक्षकों की कमी पर सिलसिलेवार नजर डालें तो आई आई टी गोवा में 62, आई आई टी धारवाड में 47, आई आई टी खडगपुुर में 46,आई आई टी कानपुर में 37, आई आई टी दिल्ली में 29  तथा आई आई टी मुम्बई में 27 प्रतिशत शिक्षकों की कमी है। अगर सरकार देश के विभिन्न विभागों में रिक्त पडे पदों को भरने का अभियान चलाए तो न सिर्फ बेरोजगारों की संख्या में आएगी अपितु यह भ्रम भी दूर हो जाएगा कि कमी युवाओं के कौशल में नहीं अपितु उन्हें उनकी के अनुरूप रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयासों में है।


- डाॅ देवेन्द्र जोशी ,85 महेश नगर उज्जैन, मो 9977796267


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