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हिंदी को बनाइये करियर ओरिएंटेड(लेख)


*विजय लक्ष्मी जांगिड़ 'विजया'*


कौन पढ़ेगा गीत ,कविता
कोन कहानी दोहराएगा
हिंदी न होगी तो मित्रो
संस्कृति कौन बचाएगा?
कोई न जानेगा जग में
राम कौन थे कृष्ण कौन
कौन सुनेगा गीता रामायण
कबीर ,तुलसी कौन बन पाएगा?

मैं हिंदी हूँ ।हिन्द की भाषा।लेकिन आज भी अपने घर मे अपनेपन को तरस रही हूँ।वैसे ही जैसे वृद्धावस्था में माँ अपने ही बच्चों के लिए तरसती है।क्योंकि आधुनिकता के चलन में पिछड़ी माँ को बच्चे या तो बेसहारा छोड़ आगे बढ़ जाते हैं या फिर किसी दूसरे के सहारे छोड़ विदेश चले जाते हैं।जहाँ से कभी कभार याद कर के दो आँसू बहा लिए जाते है। वैसे ही हिंदी दिवस पर मेरे लिए ज़ोर शोर से बातें होती है लेकिन धरातलीय स्तर पर कोई काम नही हो पाता।

पीड़ा की बात तो ये है की मेरी ही आधुनिक बहन को मुझसे ज्यादा तवज्जु दी जाती है। क्योंकि वो करियर की भाषा के रूप में प्रचारित की जा रही है।
जैसे सिर्फ अंग्रेजी पढ़ने वालों का ही करियर बनेगा बाकी तो निठल्ले ही रह जाएंगे। क्या यही वास्तविकता है?

जबकि सच्चाई तो ये है कि कुछ पेशों को छोड़ दे तो बाकी के लिए न केवल हिंदी जरूरी है बल्कि उसके बिना काम चल ही नही सकता।बच्चों को सिर्फ ये बता कर बहलाया जाता है कि अंग्रेजी से ही उनका उद्धार सम्भव है।
अब आप ही बताइए एसे में मैं उपेक्षित न हुई तो क्या हुई।
अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों से निकले 30 प्रतिशत छात्रों के करियर में अंग्रेजी व 70 प्रतिशत छात्रों के करियर में हिंदी ही काम आती है ये सभी जानते हैं मगर फिर भी न जाने कौनसी अंधी दौड़ में खुद भी लगे हैं और अपने बच्चों को भी दौड़ा रहे हैं।

भाषाओं का ज्ञान बुरा नही है क्या बुराई है अगर हमें अंग्रेजी भी आये और हिंदी भी ।गलत ये है कि हम अंग्रेजी के चलते हिंदी को उपेक्षित करें।
बहुभाषी व्यक्तित्व की जरूरत आज भी है और भविष्य में तो बहुत ज्यादा होगी।क्योंकि अभिव्यक्ति कौशल के बल पर ही न केवल आने वाले समय मे बच्चे अपना बेहतर करियर बना पाएंगे बल्कि उसमे उन्नति व विकास भी प्राप्त कर सकेंगे।
हिंदी शिक्षको का बहुत महत्वपूर्ण योगदान हो जाता है यहाँ पर की बच्चों को हिंदी व उससे जुड़े व्यवसायो व करियर की जानकारी दी जाए न केवल उन्हें बल्कि उनके अभिभावकों को भी ।
इसी के साथ बच्चो में भाषिक कौशल के विकास जिसमे पठन ,वक्तृत्व व लेखन मुख्य है ,करना चाहिए।मीडिया व विज्ञापन के युग मे अगर  अंग्रेजी के साथ ही साथ हिंदी भाषा में भी पारंगत हो जाये तो फिर क्या कहने ?
सरकार को भी ये कोशिश करनी चाहिए कि हिंदी से सम्बंधित करियर की जानकारी लोगो तक पहुंचे ।हिंदी को करियर ओरिएंटेड बनाया जाएं ।तभी अंग्रेजी के समक्ष मेरा अस्तित्व बचा रह पाएगा।
आज अगर सच्ची बात करें तो हर साल मेडिकल ,इंजीनियरिग व अकाउंटेंसी की पढ़ाई व प्रतियोगिता में कितने प्रतिशत बच्चे उत्तीर्ण हो पाते हैं ।जितने बैठते हैं उसका तीनो में मिलाकर कुल 40 प्रतिशत भी नही बाकी के 60 प्रतिशत का क्या होता है?
उनके लिए फिर वही करियर ऑप्शन बचते हैं जो हिंदी की योग्यता व अन्य सामान्य विषयो में योग्यता के कारण उन्हें मिलते हैं।पटवार,टीचर,एस एस सी ,आर पी एस सी ,बैंक ,पुलिस व अन्य परीक्षाएं य फिर कोई व्यापार इनसब में क्या हिंदी नही चाहिए?
देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा मुझसे प्रभावित है फिर क्यों मैं दोगलेपन का शिकार हूँ।
ज़रा सोचिए अंग्रेजी पढ़े बच्चे तो विदेश चले जाते हैं जो नही भी जाते उनकी मानसिकता बचपन से ही एसी बना दी जाती है कि वे अंग्रेजियत का शिकार होकर अपने देश ,भाषा ,संस्कृति को महत्व न देकर विदेशी चकाचोंध व  सांस्कृतिक संक्रमण के शिकार हो जाते हैं। । हिंदी भाषी व हिंदी के विद्यार्थी देश मे रहकर देश ,समाज व परिवार की सेवा करते हैं ।मूल्यों ,संस्कारो व संस्कृति की रक्षा करते हैं।
मुझे आज भी याद है आजादी का स्वतंत्रता संग्राम जब मैने पूरे जोर शोर से अपना दायित्व निभाया ।एक स्वाधीनता के सिपाही की तरह लोगो को जागरूक किया किंतु आजाद भारत मे मुझे उपेक्षित कर मेरी उस निष्ठा को भी  अनादरित किया गया है।
आज विदेशों में भी कई बड़े विश्व विद्यालय व महाविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है ।फिर हम क्यों पीछे रहें।
सबसे महत्वपूर्ण बात अगर हिंदी न रही तो हमारी सांस्कृतिक धरोहर हमारा साहित्य भी नही बचेगा।न कोई राम को जानेगा न कृष्ण को ।क्योंकि हिंदी बच्चे नही पढ़े पाए तो कौन रामचरित मानस की चौपाइयां गायेगा कौन गीता की बात करेगा?

मैं मेरे देश की ही भांति उदार हृदया हूँ ।किसी की विरोधी नही ।मेने उर्दू ,अंग्रेजी व अन्य कई भाषाओं को अपनाया है अपने परिवार की तरह ।किंतु मुझे अपने ही घर मे अब अपने हिस्से के मान की भी दरकार है।मैं आशावादी हूँ ।मेरे बच्चे जब तक हिंदी में कविताएँ पढ़ते रहेंगे कहानियां सुनते रहेंगे मुझे कोई खतरा नही लेकिन मेरे बच्चो जिस तरह आज मैं देखती हूँ बच्चे हिंदी साहित्य पढ़ने की बजाए अन्य बातों में लिप्त है थोड़ा डर जाती हूँ।मैं केवल भाषा नही  संस्कृति की बात करती हूं।
बात सिर्फ इतनी सी है अंग्रेजी को भी पढो मगर हिंदी को अपनी आत्मा में बसा कर।


*विजय लक्ष्मी जांगिड़ विजया, जयपुर


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