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हिन्दी का वर्चस्व(दोहे)


 - कमलेश व्यास 'कमल'


निर्विवाद है आज भी, हिन्दी का वर्चस्व।
संस्कृत की संतान गज,बाकी भाषा अश्व।।


विश्व सभा में बोल कर,बढ़ा रहे हैं शान।
पर अपने ही देश में,हिन्दी का अपमान।।


समावेश करती रही,हिन्दी सबकी लाज।
अपने गर छलते नहीं,हो जाती सरताज।।


संस्कृति का परिहास कर,करते हैं आघात।
अपनी भाषा त्याग कर,अप-संस्कृति आयात।।


हिन्दी को मत कीजिए,एक दिवस की रीति।
जन-जन की भाषा बने, बने देश की नीति।।


 - कमलेश व्यास 'कमल',उज्जैन


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