-सीमा जैन ग्वालियर
पर्वतों की चोटी,
सागर की तलहटी,
कई जगह थी रहने की,
छुपकर शांति से जीने की।
मगर ईश्वर जानते थे,
सब देवों को समझते थे,
मैं कही भी जाऊँ,
इनसां मुझे खोज ही लेगा।
मुझे चैन से कहीं नहीं रहने देगा।
बस एक ही ठिकाना है,
जहाँ उसे नही आना है।
वो उसका अपना अन्तस् है।
जो बुराइयों को छोड़ते जाते है।
हरदम निखरते जाते है।
वहीं मैं चमकने लगता हूँ।
जो बाहर दौड़ते,
सबको रौंदते,
भटकते है।
मै सबके पास पर...
कुछ,
मुझ तक पहुँचते हैं!
-सीमा जैन ग्वालियर
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