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ईमानदारी का बोझ (कविता)
















*प्रशांत शर्मा*

 


सपनों की

इस बेरंग सी दुनिया में ,

इंद्रधनुष सा हो जाऊं मैं,

बस तुम रंगों सी भर जाओ ऐसे ।

 

जहां देखो दूर तक

रेत का समंदर सा है ,

दरिया सा भर जाऊं मैं ,

बस तुम अमृत सी बरस जाओ ऐसे ।

 

रिश्तों के उजाड़ वन में 

नफरतों की गंध है ,

गुलशन सा महक जाऊं मैं ,

बस तुम खुशबू सी लग जाओ ऐसे ।

 

सारा आलम शराबी है 

पीकर लोग नशे में हैं ,

बिन पिये ही मदहोश हो जाऊं मैं ,

बस तुम नशे सी चढ़ जाओ ऐसे ।

 

मुर्दों के शहर में 

बेजान से अफसाने हैं ,

फिर एक बार जिंदा हो जाऊं मैं ,

बस तुम रूह सी उतर जाओ ऐसे ।

 

इस बात का गम नही की

दुनिया हराना चाहती है मुझे ,

सारे जहां से जीत जाऊं मैं,

बस तुम अपना दिल हार जाओ ऐसे ।

 

*प्रशांत शर्मा ,चौरई ,छिंदवाड़ा ,म प्र 










 












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