डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' स्मृति सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यान माला के पंचम दिवस पर डॉ. सीताराम दुबे का व्याख्यान
उज्जैन। (डॉ गिरीश पंड्या)। वर्तमान में भले ही अत्याचार, भ्रष्टाचार, अनाचार और हिंसा का बोलबाला है किन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि बुद्ध की दी गई शिक्षा ही समाज में नैतिकता कायम कर सकती है। बुद्ध के आदर्शो पर चलकर ही विश्व शांति और अहिंसा के सन्मार्ग पर चल पायेगा। बुद्ध ने कहा है कि किसी भी समाज में गरीबी सबसे बड़ा दोष होता है गरीबी ही अशांति और हिंसा का एक कारण हो सकती है। ऐसे में एक राजा का दायित्व होता है कि वह समाज से गरीबी को पूर्णरूप से दूर कर दें। राज्य में पूंजी का वितरण समान रूप से करने की जिम्मेदारी भी राजा की है। बुद्ध की कल्पना में यदि राजा का प्रशासन समाज में समरसता लाने वाला हो और ऐसा करने के लिए यदि वह प्रजा को कष्ट भी देता है तो इसमें कोई बुराई नहीं। वाणी में संयम रखते हुए हम सद्भावना को प्राप्त कर सकते है। व्यक्ति में यदि करूणा है तो वह कभी हिंसक नहीं हो सकता। बुद्ध के अनुसार कैसी भी विपरीत परिस्थिति क्यों न हो, हमें शांति और सद्भाव बनाए रखना चाहिए। यह तभी संभव है जब हम संयम को अपनाये। उक्त विचार बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय वाराणसी के प्राध्यापक डॉ. सीताराम दुबे ने भारतीय ज्ञानपीठ में आयोजित कवि कुलगुरू डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमन' स्मृति सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यान माला के पंचम दिवस पर 'बौद्ध अहिंसा की प्रकृति एवं सद्भावना स्थापना में उसकी प्रासंगिकता' विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किये। डॉ. सीताराम दुबे ने कहा कि कुछ लोगों का मत है कि पहले सिर्फ शांति का ही युग था। धीरे-धीरे मनुष्य के मन में जब विकृति आई तब हिंसा और अनाचार आरंभ हुए और शासन के लिए राजा बनाये जाने की प्रथा आरंभ हुई। कुछ लोगों का यह मत है कि जीवन का आरंभ हिंसा से हुआ है जब व्यक्ति अपने आहार के लिए पशुओं की हिंसा पर निर्भर था। धीरे-धीरे जब उसने पशुओं को पालना आरंभ किया तब परस्पर प्रेम शांति और सद्भाव का प्रादुर्भाव हुआ। हमें विश्वास है कि बुद्ध के विचारों के प्रति हमारा अनुसरण लगातार बढ़ेगा और हम विश्व शांति की ओर लौटेंगे।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में क्षैत्रिय शिक्षा संस्थान, भोपाल शिक्षा विभाग प्रमुख डॉ. रमेश बाबू ने 'संवैधानिक मूल्यः शिक्षा की भूमिका' विषय पर कहा कि टीवी पर जानकारियों के लिए चैनल्स लगातार बढ़ते जा रहे है किन्तु हमारी समझ उतनी ही घटती जा रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमने संवाद करना बंद कर दिया है। यदि हम गांधी को समझना चाहते है तो सर्वप्रथम हमें हमारे संविधान को समझना होगा और यदि हम संवैधानिक मूल्यों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाना चाहते है तो हमें संवाद लगातार स्थापित करना होगा। भारत विविधताओं से भरा देश है यह विविधता ही हमारी शक्ति है। गांधी जी का विचार था कि भारत एक धर्म नहीं बल्कि विभिन्न धर्मो का एक देश होगा। इसी विचार से धर्मनिरपेक्षता प्रभाव हमारे संविधान में आया। हमें चाहिए कि हम संविधान के अधिकारों के प्रति जागरूक हो। संविधानकर्ता के अनुसार असमानता से समानता की ओर हमें जाना चाहिए किन्तु आज इसका विपरीत हो रहा है। हमें बुनियादी शिक्षा के अर्थ को जानकर हर व्यक्ति तक मूलभूत शिक्षा पहुंचाना चाहिए, तभी देश में समानता आयेगी।
स्वागत उद्बोधन संस्था अध्यक्ष श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ ने दिया। व्याख्यानमाला के आरंभ में संस्था की छात्राओं ने सर्वधर्म प्रार्थना प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत श्री लक्ष्मीनारायण परमार, श्री अरविन्द श्री कुलदीप कुशवाह, श्री सुनील गांदिया, श्री सुरेश भीमावद एवं श्री विमलेंदु घोष ने किया।इस अवसर पर वक्ताओं का शाल और श्रीफल से सम्मान वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री प्रेमनारायण नागर जी किया गया। संचालन महाविद्यालयीन प्राचार्य डॉ. नीलम महाडिक ने किया। आभार विद्यालयीन प्राचार्य श्रीमती मीना नागर ने माना।
अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला में कल दिनांक 1 अक्टूबर 2019 मंगलवार के आयोजन
सप्तदश अ.भा. सद्भावना व्याख्यानमाला दिनांक 1 अक्टूबर 2019 को सांय 5 बजे से प्रखर वक्ता एवं प्रसिद्ध साहित्यकार एवं निदेशक स्पेसर सेंटर, इन्दौर के श्री जनक मेहता 'गांधीजी की नेतृत्व क्षमता' विषय पर अपना व्याख्यान देंगे। तथा अध्यक्षीय उद्बोधन में लातूर के वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार श्री अतुल देउलगांवकर 'वातावरण बदलाव की चुनौती' विषय पर अपने व्याख्यान देंगे।
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