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भाषा, शिक्षा और संस्कृति को लेकर बेहद सजग थे महात्मा गांधी

महात्मा गांधी : शिक्षा, संस्कृति और भारतीय भाषाएं पर केंद्रित दो दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन हुआ



उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला एवं गांधी अध्ययन केंद्र तथा हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, दिल्ली के संयुक्त  तत्वावधान में महात्मा गांधी के 150 वें जयंती वर्ष के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ  21 सितंबर को वाग्देवी भवन में हुआ। महात्मा गांधी : शिक्षा, संस्कृति और भारतीय भाषाएं पर केंद्रित इस संगोष्ठी में दस से अधिक राज्यों के विद्वान और अध्येतागण भाग ले रहे हैं। इस संगोष्ठी का उद्घाटन कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा की अध्यक्षता में 21 सितम्बर को दोपहर 2 : 30 बजे वाग्देवी भवन स्थित राष्ट्रभाषा सभागार में हुआ। आयोजन के विशिष्ट अतिथि हरियाणा साहित्य अकादमी, चंडीगढ़ की पूर्व निदेशक एवं साहित्यकार डॉ मुक्ता एवं वरिष्ठ सम्पादक एवं लेखक डॉ राकेश पांडेय, नई दिल्ली थे। विषय प्रवर्तन हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने किया।


विशिष्ट अतिथि डॉ राकेश पांडेय ने कहा कि गांधीजी भाषा और संस्कृति को लेकर बेहद सजग थे। गांधी जी ने विदेश में रहते हुए 4 भाषाओं में अखबार निकाले। उनके द्वारा विदेशों में स्थापित आश्रमों में भी भारतीय भाषाओं की पढ़ाई होती थी। आज भी अनेक लोकगीतों में गांधीजी जीवंत हैं। गांधी जी जुड़े लोकगीतों की कई पुस्तिकाओं को प्रतिबंधित कर दिया गया था, जिन्हें प्रकाशित किया जा रहा है। उनके कारण ही गिरमिटिया प्रथा समाप्त हुई।


विशिष्ट अतिथि डॉक्टर मुक्ता, गुड़गांव ने कहा कि गांधीजी समानता के पक्षधर थे। उन्होंने साम्राज्यवाद के खिलाफ बहुत बड़ी लड़ाई लड़ी और भारत आजाद हुआ। 


अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि वाणी देवी है, इस दृष्टि से सभी भाषाएँ देवी हैं। संस्कृति जिस विविधतापूर्ण सौंदर्य का संवहन करती है, वही भारतीय भाषाओं के माध्यम से प्रगट होता है। देश की सभी भाषाएँ भिन्न भिन्न रंग और सुवास लिए हुए पुष्पों की भांति है, हिंदी सूत्र के समान है जो सबको बांधती है। गांधी जैसे महान व्यक्तित्व अपने ढंग से जो कुछ कह देते हैं, उसे आगे के लोग शिक्षा के रूप में अंगीकार कर लेते हैं। गांधी जी का शिक्षा दर्शन व्यापक है। शिक्षा के चार चरण हैं पढ़ो, समझो, आचरण करो और अंत में प्रचारण करो। गांधी जी ने पहले आचरण किया और अन्य लोगों को दिशा दी। 


प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि गांधी का शिक्षा और संस्कृति चिंतन व्यापक मानवीयता के आधार पर खड़ा है। महात्मा गांधी का संस्कृति चिंतन समावेशी है। उनके लिए संस्कृति और धर्म व्यापक मानवीयता पर टिके हुए हैं। संस्कृति और धर्म के गहरे अर्थों को लेकर जीने वाला उनके जैसा कोई दूसरा व्यक्तित्व दिखाई नहीं देता, जो बिना संकीर्ण हुए राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन में इनका इस्तेमाल करता हो। दुनिया में और भी नेतृत्वकर्ता हुए जिन्होंने व्यापक परिवर्तन की लहर पैदा की, पर वे चिरंजीवी नहीं हुए। स्वतंत्रता और परिवर्तन की दिशा में गांधी विचार के सार्वकालिक और सार्वभौमिक होने के पीछे बहुत बड़ा कारण उनका सांस्कृतिक दृष्टिकोण है।


एक ब्रश राष्ट्र के नाम चित्रकला प्रदर्शनी को निहारा सैकड़ों कला रसिकों ने 



इस अवसर पर सुधी चित्रकार डॉ मुक्ति पाराशर, कोटा के संयोजन में एक ब्रश राष्ट्र के नाम समूह चित्रकला प्रदर्शनी संयोजित की गई,  जिसका उद्घाटन अतिथियों ने किया। प्रदर्शनी में देश विदेश के कलाकारों की चालीस से अधिक चित्र कृतियों के माध्यम से सन 1857 से 1947 के मध्य के इतिहास के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को प्रदर्शित किया जा रहा है। इस प्रदर्शनी में किशोर से लेकर वरिष्ठ आयु वर्ग के 30 से अधिक चित्रकार अपनी चित्रकृतियों के माध्यम से देशभक्ति का संदेश दे रहे हैं। यह प्रदर्शनी राजस्थान के अनेक शहरों में संयोजित की जा चुकी है।


स्मारिका महात्मायनी और हिंदुस्तानी भाषा अकादमी पत्रिका का लोकार्पण



हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, नई दिल्ली का परिचय संस्था अध्यक्ष श्री सुधाकर पाठक ने दिया। इस अवसर पर राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा प्रकाशित एवं श्री प्रभु चौधरी द्वारा संपादित विशेष स्मारिका महात्मायनी और श्री सुधाकर पाठक द्वारा संपादित हिंदुस्तानी भाषा अकादमी पत्रिका का लोकार्पण अतिथियों ने किया।प्रारंभ में स्वागत भाषण डॉक्टर गीता नायक ने दिया। संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया एवं आभार प्रदर्शन डॉ प्रेमलता चुटैल ने किया।स्वागत मुख्य समन्वयक प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ सुधाकर पाठक, प्रो प्रेमलता चुटैल एवं प्रो गीता नायक, समन्वयक डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ प्रभु चौधरी, डॉ रमेश तिवारी, दिल्ली आदि ने किया। आयोजन में राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना का सहयोग था।


उद्घाटन के पश्चात आयोजित तकनीकी सत्र  की अध्यक्षता  डॉ हरेराम वाजपेयी  ने की। विशिष्ट अतिथि श्री यशवंत भंडारी झाबुआ थे। इस सत्र में अनेक शोध कर्ताओं ने शोध आलेखों का वाचन किया।


दिनांक 22 सितम्बर को प्रातः काल 10 : 30  से संध्या 5 बजे तक विभिन्न सत्रों में गांधी जी के शिक्षा, संस्कृति और भारतीय भाषाओं के क्षेत्र में अवदान पर मंथन किया जाएगा। संगोष्ठी के तकनीकी सत्रों में आमन्त्रित वक्ताओं में प्रमुख हैं -   डॉ रमेश तिवारी, दिल्ली, पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री शशिमोहन श्रीवास्तव, उज्जैन, श्रीमती सुरेखा शर्मा, गुरुग्राम, हरियाणा, श्रीमती मनीषा शर्मा, दिल्ली, श्री राजकुमार श्रेष्ठ, दिल्ली, डॉ शिव चौरसिया, डॉ ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन, श्री जीवनसिंह ठाकुर, देवास, श्रीमती सुषमा भंडारी, श्रीमती शकुंतला मित्तल, श्रीमती सरिता गुप्ता, श्री विजय शर्मा, दिल्ली, श्री दीपक विजयरण, दिल्ली श्रीमती सरोज शर्मा, दिल्ली,  डॉ हरेराम वाजपेयी, इंदौर, श्री विजय कुमार राय, दिल्ली, श्रीमती नीतू पांचाल, दिल्ली, श्रीराम दवे, उज्जैन आदि। 


आयोजन में दस से अधिक राज्यों के विद्वान, संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार, समाजसेवी, शिक्षाविद् और शोधकर्ता  भाग ले रहे हैं।


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